
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥ अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी
प्रीति करि काहु सुख न लह्यो। प्रीति पतंग करी दीपक सों, आपै प्रान दह्यो॥ अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपति हाथ गह्यो। सारँग प्रीति करी
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै। जैसे उड़ि जहाज की पंछी, फिरि जहाज पै आवै॥ कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै। परम गंग
चोरी मोरी गेंदया मैं कैशी जाऊं पाणीया ॥ध्रु०॥ ठाडे केसनजी जमुनाके थाडे । गवाल बाल सब संग लियो । न्यारे न्यारे खेल खेलके । बनसी
कोण गती ब्रिजनाथ । अब मोरी कोण गती ब्रिजनाथ ॥ध्रु०॥ भजनबिमुख अरु स्मरत नही । फिरत विषया साथ ॥१॥ हूं पतीत अपराधी पूरन । आचरु
खेलिया आंगनमें छगन मगन किजिये कलेवा । छीके ते सारी दधी उपर तें कढी धरी पहीर । लेवूं झगुली फेंटा बाँधी लेऊं मेवा ॥१॥ गवालनके
रैन जागी पिया संग रंग मीनी ॥ध्रु०॥ प्रफुल्लित मुख कंज नेन खजरीटमान मेन मिथुरी । रहे चुरन कच बदन ओप किनी ॥१॥ आतुर आलस जंभात
अति सूख सुरत किये ललना संग जात समद मन्मथ सर जोरे । राती उनीदे अलसात मरालगती गोकुल चपल रहतकछु थोरे । मनहू कमलके को सते
नारी दूरत बयाना रतनारे ॥ध्रु०॥ जानु बंधु बसुमन बिसाल पर सुंदर शाम सीली मुख तारे । रहीजु अलक कुटील कुंडलपर मोतन चितवन चिते बिसारे ।
उधो मनकी मनमें रही ॥ध्रु०॥ गोकुलते जब मथुरा पधारे । कुंजन आग देही ॥१॥ पतित अक्रूर कहासे आये । दुखमें दाग देही ॥२॥ तन तालाभरना
कमलापती भगवान । मारो साईं कम०॥ध्रु०॥ राम लछमन भरत शत्रुघन । चवरी डुलावे हनुमान ॥१॥ मोर मुगुट पितांबर सोभे । कुंडल झलकत कान ॥२॥ सूरदास
तबमें जानकीनाथ कहो ॥ध्रु०॥ सागर बांधु सेना उतारो । सोनेकी लंका जलाहो ॥१॥ तेतीस कोटकी बंद छुडावूं बिभिसन छत्तर धरावूं ॥२॥ सूरदास प्रभु लंका जिती
अद्भुत एक अनुपम बाग ॥ध्रु०॥ जुगल कमलपर गजवर क्रीडत तापर सिंह करत अनुराग ॥१॥ हरिपर सरवर गिरीवर गिरपर फुले कुंज पराग ॥२॥ रुचित कपोर बसत
निरधनको धनि राम । हमारो०॥ध्रु०॥ खान न खर्चत चोर न लूटत । साथे आवत काम ॥ह०॥१॥ दिन दिन होत सवाई दीढी । खरचत को नहीं
जय जय श्री बालमुकुंदा । मैं हूं चरण चरण रजबंदा ॥ध्रु०॥ देवकीके घर जन्म लियो जद । छुट परे सब बंदा ॥ च०॥१॥ मथुरा त्यजे
क्यौरे निंदभर सोया मुसाफर क्यौरे निंदभर सोया ॥ध्रु०॥ मनुजा देहि देवनकु दुर्लभ जन्म अकारन खोया ॥ मुसा०॥१॥ घर दारा जोबन सुत तेरा वामें मन तेरा
केत्ते गये जखमार भजनबिना केत्ते गये० ॥ध्रु०॥ प्रभाते उठी नावत धोवत पालत है आचार ॥ भज०॥१॥ दया धर्मको नाम न जाण्यो ऐसो प्रेत चंडाल ॥
बेर बेर नही आवे अवसर बेर बेर नही आवे । जो जान तो करले भलाई जन्मोजन्म सुख पावे ॥ बरे०॥१॥ धन जोबत अंजलीको पाणी बखणतां
मन तोये भुले भक्ति बिसारी मन तो ये भुले भक्ति बिसारी । शिरपर काल सदासर सांधत देखत बाजीहारी ॥ध्रु०॥ कौन जमनातें सकृत कीनो मनुख देहधरी
सब दिन गये विषयके हेत सब दिन गये ॥ गंगा जल छांड कूप जल पिवत हरि तजी पूजत प्रेत ॥ध्रु०॥ जानि बुजी अपनो तन खोयो
देखो ऐसो हरी सुभाव देखो ऐसो हरी सुभाव। बिनु गंभीर उदार उदधि प्रभु जानी शिरोमणी राव ॥ध्रु०॥ बदन प्रसन्न कमलपद सुनमुख देखत है जैसे |
जनम सब बातनमें बित गयोरे ॥ध्रु०॥ बार बरस गये लडकाई । बसे जोवन भयो । त्रिश बरस मायाके कारन देश बिदेश गयो ॥१॥ चालीस अंदर
जयजय नारायण ब्रह्मपरायण श्रीपती कमलाकांत ॥ध्रु०॥ नाम अनंत कहां लगी बरनुं शेष न पावे अंत । शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक सूर मुनिध्यान धरत ॥ जयजय०
ऐसे संतनकी सेवा । कर मन ऐसे संतनकी सेवा ॥ध्रु०॥ शील संतोख सदा उर जिनके । नाम रामको लेवा ॥ क०॥१॥ आन भरोसो हृदय नहि
हरि जनकू हरिनाम बडो धन हरि जनकू हरिनाम ॥ ध्रु०॥ बिन रखवाले चोर नहि चोरत सुवत है सुख धाम ॥ ब०॥१॥ दिन दीन होते सवाई
महाराज भवानी ब्रह्म भुवनकी रानी ॥ध्रु०॥ आगे शंकर तांडव करत है । भाव करत शुलपानी ॥ महा०॥१॥ सुरनर गंधर्वकी भिड भई है । आगे खडा
सुदामजीको देखत श्याम हसे सुदामजीको देखत० ॥ध्रु०॥ हम तुम मित्र है बालपनके । अब तुम दूर बसे ॥ सुदामजी ॥१॥ फाटीरे धोती टुटी पगडीयां ।
कायकूं बहार परी । मुरलीया ॥ कायकू ब०॥ध्रु०॥ जेलो तेरी ज्यानी पग पछानी । आई बनकी लकरी मुरलिया ॥ कायकु ब०॥१॥ घडी एक करपर घडी
फुलनको महल फुलनकी सज्या फुले कुंजबिहारी । फुली राधा प्यारी ॥ध्रु०॥ फुलेवे दंपती नवल मनन फुले फले करे केली न्यारी ॥१॥ फुलीलता वेली विविधा सुमन
रसिक सीर भो हेरी लगावत गावत राधा राधा नाम ॥ध्रु०॥ कुंजभवन बैठे मनमोहन अली गोहन सोहन सुख तेरोई गुण ग्राम ॥१॥ श्रवण सुनत प्यारी पुलकित
तुमको कमलनयन कबी गलत ॥ध्रु०॥ बदन कमल उपमा यह साची ता गुनको प्रगटावत ॥१॥ सुंदर कर कमलनकी शोभा चरन कमल कहवावत ॥२॥ और अंग कही
मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती ॥ध्रु०॥ सुनीरी सखी श्रवण दे अब तुजेही बिधि हरिमुख राजती ॥१॥ करपल्लव जब धरत सबैलै सप्त सूर निकल साजती ॥२॥ सूरदास
शाम नृपती मुरली भई रानी ॥ध्रु०॥ बन ते ल्याय सुहागिनी किनी । और नारी उनको न सोहानी ॥१॥ कबहु अधर आलिंगन कबहु । बचन सुनन
काहू जोगीकी नजर लागी है मेरो कुंवर । कन्हिया रोवे ॥ध्रु०॥ घर घर हात दिखावे जशोदा दूध पीवे नहि सोवे । चारो डांडी सरल सुंदर
मधुरीसी बेन बजायके । मेरो मन मोह्यो सांवरा ॥ध्रु०॥ मेरे आंगनमें बांसको बेडलो सिंचो मन चित्त लायके । अब तो बेरण भई बासरी मोहन मुखपर
जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो ॥ज०॥ध्रु०॥ बन्सीके नाद थंभ्यो जमुनाको नीर खग मृग। धेनु मोहि कोकिला अनें किर ॥बं०॥१॥ सुरनर मुनि मोह्या रागसो गंभीर ।
हमसे छल कीनो काना नेनवा लगायके ॥ध्रु०॥ जमुनाजलमें जीपें गेंद डारी कालि नागनाथ लाये । इंद्रको गुमान हर्यो गोवरधन धारके ॥ह०॥१॥ मोर मुगुट बांधे काली
सावरे मोकु रंगमें बोरी बोरी सांवरे मोकुं रंगमें बोरी बोरी ॥ध्रु०॥ बहीयां पकर कर शीरकी गागरिया । छिन गागर ढोरी । रंगमें रस बस मोकूं
दरसन बिना तरसत मोरी अखियां ॥ध्रु०॥ तुमी पिया मोही छांड सीधारे फरकन लागी छतिया ॥द०॥१॥ बस्ति छाड उज्जड किनी व्याकुल भई सब सखियां ॥द०॥२॥ सूरदास
नेननमें लागि रहै गोपाळ नेननमें ॥ध्रु०॥ मैं जमुना जल भरन जात रही भर लाई जंजाल ॥ने०॥१॥ रुनक झुनक पग नेपुर बाजे चाल चलत गजराज ॥ने०॥२॥
देखो माई हलधर गिरधर जोरी ॥ध्रु०॥ हलधर हल मुसल कलधारे गिरधर छत्र धरोरी ॥देखो०॥१॥ हलधर ओढे पित पितांबर गिरधर पीत पिछोरी ॥देखो०॥२॥ हलधर केहे मेरी
नेक चलो नंदरानी उहां लगी नेक चलो नंदारानी ॥ध्रु०॥ देखो आपने सुतकी करनी दूध मिलावत पानी ॥उ०॥१॥ हमरे शिरकी नयी चुनरिया ले गोरसमें सानी ॥उ०॥२॥
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति । सरवस त्याग मगन होय नाचे जनम करम गुन गावे ॥ उ०॥ध्रु०॥ कथनी कथे निरंतर मेरी चरन कमल
जागो पीतम प्यारा लाल तुम जागो बन्सिवाला । तुमसे मेरो मन लाग रह्यो तुम जागो मुरलीवाला ॥ जा०॥ध्रु०॥ बनकी चिडीयां चौं चौं बोले पंछी करे
बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी । शिव समाधि भूलि गयी मुनि मनकी तारी ॥ बा०॥ध्रु०॥ बेद भनत ब्रह्मा भुले भूले ब्रह्मचरी । सुनतही आनंद भयो
देख देख एक बाला जोगी द्वारे मेरे आया हो ॥ध्रु०॥ पीतपीतांबर गंगा बिराजे अंग बिभूती लगाया हो । तीन नेत्र अरु तिलक चंद्रमा जोगी जटा
नंद दुवारे एक जोगी आयो शिंगी नाद बजायो । सीश जटा शशि वदन सोहाये अरुण नयन छबि छायो ॥ नंद ॥ध्रु०॥ रोवत खिजत कृष्ण सावरो
राधे कृष्ण कहो मेरे प्यारे भजो मेरे प्यारे जपो मेरे प्यारे ॥ध्रु०॥ भजो गोविंद गोपाळ राधे कृष्ण कहो मेरे ॥ प्यारे०॥१॥ कृष्णजीकी लाल लाल अखियां
श्रीराधा मोहनजीको रूप निहारो ॥ध्रु०॥ छोटे भैया कृष्ण बडे बलदाऊं चंद्रवंश उजिआरो ॥श्री०॥१॥ मोर मुगुट मकराकृत कुंडल पितांबर पट बारो ॥श्री०॥२॥ हलधर गीरधर मदन मनोहर
देखे मैं छबी आज अति बिचित्र हरिकी ॥ध्रु०॥ आरुण चरण कुलिशकंज । चंदनसो करत रंग। सूरदास जंघ जुगुली खंब कदली । कटी जोकी हरिकी ॥१॥
मीरा को प्रभु साँची दासी बनाओ। झूठे धंधों से मेरा फंदा छुड़ाओ॥ लूटे ही लेत विवेक का डेरा। बुधि बल यदपि करूं बहुतेरा॥ हाय!हाय! नहिं
मेरो मन राम-हि-राम रटै। राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै। जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै। कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।