
मेरो मन राम-हि-राम रटै
मेरो मन राम-हि-राम रटै। राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै। जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै। कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
मेरो मन राम-हि-राम रटै। राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै। जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै। कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा, श्याम सुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा। तू ही नटवर, तू ही नागर, तू ही बाल मुकुन्दा
राग धुनपीलू हरि बिन कूण गती मेरी। तुम मेरे प्रतिपाल कहिये मैं रावरी चेरी॥ आदि अंत निज नाँव तेरो हीयामें फेरी। बेर बेर पुकार कहूं
पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।। जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी
तेरो कोई नहिं रोकणहार, मगन होइ मीरा चली।। लाज सरम कुल की मरजादा, सिरसै दूर करी। मान-अपमान दोऊ धर पटके, निकसी ग्यान गली।। ऊँची अटरिया
होरी खेलत हैं गिरधारी। मुरली चंग बजत डफ न्यारो। संग जुबती ब्रजनारी।। चंदन केसर छिड़कत मोहन अपने हाथ बिहारी। भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।। स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान। सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।। बिप्र सुदामा को दालद
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी। तुम(तो) पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।। मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई
बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी। श्याम मैं बादल देख डरी। काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी। श्याम मैं बादल देख डरी।
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।। ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक। गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।। मैं बैरागिण
मन रे परसि हरिके चरण। सुभग सीतल कंवल कोमल,त्रिविध ज्वाला हरण। जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।। जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हे, राख अपनी
प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय।। जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्याँ बिन सजनी। आकुल व्याकुल फिरूँ रैन दिन,
प्रभुजी मैं अरज करुँ छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार।। इण भव में मैं दुख बहु पायो संसा-सोग निवार। अष्ट करम की तलब लगी है दूर
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।। छांडि दई कुलकी कानि
बरसै बदरिया सावन की सावन की मनभावन की। सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की। उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो दामण
बसो मोरे नैनन में नंदलाल। मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल। अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।। छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर। हम चितवत तुम चितवत नाहीं मन के बड़े कठोर। मेरे आसा चितनि तुम्हरी और न दूजी ठौर। तुमसे हमकूँ
दरस बिन दूखण लागे नैन। जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन। सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन। बिरह व्यथा कांसू
बाला मैं बैरागण हूंगी। जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे, सोही भेष धरूंगी। सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूंगी। जाको नाम निरंजन कहिये, ताको
प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े।।टेक।। अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय। घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो
मन रे पासि हरि के चरन। सुभग सीतल कमल- कोमल त्रिविध – ज्वाला- हरन। जो चरन प्रह्मलाद परसे इंद्र- पद्वी- हान।। जिन चरन ध्रुव अटल
बरसै बदरिया सावन की, सावन की मनभावन की । सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की ॥ उमड घुमड चहुं दिस से
तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे, नागर नंद कुमार। मुरली तेरी मन हर्यो, बिसर्यो घर-व्यौहार॥ जब तें सवननि धुनि परि, घर आँगण न सुहाइ। पारधि ज्यूँ
श्याम मोसूँ ऐंडो डोलै हो। औरन सूँ खेलै धमार, म्हासूँ मुखहुँ न बोले हो॥ म्हारी गलियाँ ना फिरे वाके, आँगन डोलै हो। म्हारी अँगुली ना
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे। मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे। लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥ जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो। खरच
अरज करे छे मीरा रोकडी। उभी उभी अरज॥ध्रु०॥ माणिगर स्वामी मारे मंदिर पाधारो सेवा करूं दिनरातडी॥१॥ फूलनारे तुरा ने फूलनारे गजरे फूलना ते हार फूल
आज मारे साधुजननो संगरे राणा। मारा भाग्ये मळ्यो॥ध्रु०॥ साधुजननो संग जो करीये पियाजी चडे चोगणो रंग रे॥१॥ सीकुटीजननो संग न करीये पियाजी पाडे भजनमां भंगरे॥२॥
कहां गयोरे पेलो मुरलीवाळो। अमने रास रमाडीरे॥ध्रु०॥ रास रमाडवानें वनमां तेड्या मोहन मुरली सुनावीरे॥१॥ माता जसोदा शाख पुरावे केशव छांट्या धोळीरे॥२॥ हमणां वेण समारी सुती
कठण थयां रे माधव मथुरां जाई। कागळ न लख्यो कटकोरे॥ध्रु०॥ अहियाथकी हरी हवडां पधार्या। औद्धव साचे अटक्यारे॥१॥ अंगें सोबरणीया बावा पेर्या। शीर पितांबर पटकोरे॥२॥ गोकुळमां
जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥ प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥ सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥ ले ले अपनी लकुटी
तोरी सावरी सुरत नंदलालाजी॥ध्रु०॥ जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत। कारी कामली वालाजी॥१॥ मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत लालाजी॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके
थारो विरुद्ध घेटे कैसी भाईरे॥ध्रु०॥ सैना नायको साची मीठी। आप भये हर नाईरे॥१॥ नामा शिंपी देवल फेरो। मृतीकी गाय जिवाईरे॥२॥ राणाने भेजा बिखको प्यालो। पीबे
नही तोरी बलजोरी राधे॥ध्रु०॥ जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। छीन लीई बांसरी॥१॥ सब गोपन हस खेलत बैठे। तुम कहत करी चोरी॥२॥ हम नही अब तुमारे
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना०॥ध्रु०॥ नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥ ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर।
बात क्या कहूं नागरनटकी। नागर नटकी नागर०॥ध्रु०॥ हूं दधी बेचत जात ब्रिंदावन। छीन लीई मोरी दधीकी मटकी॥१॥ मोर मुकूट पीतांबर शोभे। अती शोभा उस कौस्तुभ
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी। तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥ दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥ सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥
हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥ आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥ ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस
झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥ अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥ लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥ नाचत ताल
कृष्ण करो जजमान॥ प्रभु तुम॥ध्रु०॥ जाकी किरत बेद बखानत। सांखी देत पुरान॥ प्रभु०२॥ मोर मुकुट पीतांबर सोभत। कुंडल झळकत कान॥ प्रभु०३॥ मीराके प्रभू गिरिधर नागर।
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥ मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥ भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
हातकी बिडिया लेव मोरे बालक। मोरे बालम साजनवा॥ध्रु०॥ कत्था चूना लवंग सुपारी बिडी बनाऊं गहिरी। केशरका तो रंग खुला है मारो भर पिचकारी॥१॥ पक्के पानके
किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥ जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥ मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन
शाम मुरली बजाई कुंजनमों॥ध्रु०॥ रामकली गुजरी गांधारी। लाल बिलावल भयरोमों॥१॥ मुरली सुनत मोरी सुदबुद खोई। भूल पडी घरदारोमों॥२॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। वारी जाऊं तोरो
माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥ कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥ कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥
राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी। ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी॥१॥ ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी। हरहर बांसकी पेरी॥२॥ घडी
मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा। मेरे चित्त नंद लालछे॥ध्रु०॥१॥ ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों। मैं जप धर तुलसी मालछे॥२॥ मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गला
दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥ गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥ परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥ ब्रिंद्रावनके
पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या॥ध्रु०॥ तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥ पपैय्या०॥१॥ तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥ पपैय्या०॥२॥