बहती जिस नक्षत्रलोक में
निद्रा के श्वासों से बात,
रजतरश्मियों के तारों पर
बेसुध सी गाती है रात!

अलसाती थीं लहरें पीकर
मधुमिश्रित तारों की ओस,
भरतीं थीं सपने गिन गिनकर
मूक व्यथायें अपने कोप।

दूर उन्हीं नीलमकूलों पर
पीड़ा का ले झीना तार,
उच्छ्वासों की गूँथी माला
मैनें पाई थी उपहार!

यह विस्मॄति है या सपना वह
या जीवन विनिमय की भूल!
काले क्यों पड़ते जाते हैं
माला के सोने से फूल?

Share the Goodness
Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Choose from all-time favroits Poets

Join Brahma

Learn Sanatan the way it is!