किस सुधिवसन्त का सुमनतीर,
कर गया मुग्ध मानस अधीर?

वेदना गगन से रजतओस,
चू चू भरती मन-कंज-कोष,
अलि सी मंडराती विरह-पीर!

मंजरित नवल मृदु देहडाल,
खिल खिल उठता नव पुलकजाल,
मधु-कन सा छलका नयन-नीर!

अधरों से झरता स्मितपराग,
प्राणों में गूँजा नेह-राग,
सुख का बहता मलयज समीर!

घुल घुल जाता यह हिमदुराव,
गा गा उठते चिर मूक भाव,
अलि सिहर सिहर उठता शरीर!

Share the Goodness
Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Choose from all-time favroits Poets

Join Brahma

Learn Sanatan the way it is!