हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ ।

आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का ।
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने ‘अरे सलोने`,
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने ।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ ।
कभी एक अँगुल भर चौड़ा, कभी एक फ़ुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा ।

घटता-बढ़ता रोज़, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज़ लिवाएँ
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आए !

(अब चांद का जवाब सुनिए।)

हंसकर बोला चान्द, अरे माता, तू इतनी भोली ।
दुनिया वालों के समान क्या तेरी मति भी डोली ?
घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं वैसा ही रहता हूँ ।
केवल भ्रमवश दुनिया को घटता-बढ़ता लगता हूंँ ।

आधा हिस्सा सदा उजाला, आधा रहता काला ।
इस रहस्य को समझ न पाता भ्रमवश दुनिया वाला ।
अपना उजला भाग धरा को क्रमशः दिखलाता हूँ ।
एक्कम दूज तीज से बढ़ता पूनम तक जाता हूँ ।

फिर पूनम के बाद प्रकाशित हिस्सा घटता जाता ।
पन्द्रहवाँ दिन आते-आते पूर्ण लुप्त हो जाता ।
दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना यात्रा हरदम जारी ।
पूनम हो या रात अमावस चलना ही लाचारी ।

चलता रहता आसमान में नहीं दूसरा घर है ।
फ़िक्र नहीं जादू-टोने की सर्दी का, बस, डर है ।
दे दे पूनम की ही साइज का कुर्ता सिलवा कर ।
आएगा हर रोज़ बदन में इसकी मत चिन्ता कर।

अब तो सर्दी से भी ज़्यादा एक समस्या भारी ।
जिसने मेरी इतने दिन की इज़्ज़त सभी उतारी ।
कभी अपोलो मुझको रौंदा लूना कभी सताता ।
मेरी कँचन-सी काया को मिट्टी का बतलाता ।

मेरी कोमल काया को कहते राकेट वाले
कुछ ऊबड़-खाबड़ ज़मीन है, कुछ पहाड़, कुछ नाले ।
चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी गौरव निज सुषमा पर ?
खुश होगी कैसे नारी ऐसी भद्दी उपमा पर ।

कौन पसन्द करेगा ऐसे गड्ढों और नालों को ?
किसकी नज़र लगेगी अब चन्दा से मुख वालों को ?
चन्द्रयान भेजा अमरीका ने भेद और कुछ हरने ।
रही सही जो पोल बची थी उसे उजागर करने ।

एक सुहाना भ्रम दुनिया का क्या अब मिट जाएगा ?
नन्हा-मुन्ना क्या चन्दा की लोरी सुन पाएगा ?
अब तो तू ही बतला दे माँ कैसे लाज बचाऊँ ?
ओढ़ अन्धेरे की चादर क्या सागर में छिप जाऊँ ?

hath kar baitha chaand ek din, maata se yah bola,
silava do maan mujhe oon ka mota ek jhingola .
san-san chalatee hava raat bhar jaade se marata hoon,
thithur-thithur kar kisee tarah yaatra pooree karata hoon.

aasamaan ka safar aur yah mausam hai jaade ka,
na ho agar to la do kurta hee koee bhaade ka .
bachche kee sun baat, kaha maata ne are salone`,
kushal kare bhagavaan, lage mat tujhako jaadoo tone .

jaade kee to baat theek hai, par main to daratee hoon,
ek naap mein kabhee nahin tujhako dekha karatee hoon .
kabhee ek angul bhar chauda, kabhee ek fut mota,
bada kisee din ho jaata hai, aur kisee din chhota .

ghatata-badhata roz, kisee din aisa bhee karata hai
nahin kisee kee bhee aankhon ko dikhalaee padata hai
ab too hee ye bata, naap teree kis roz livaen
see de ek jhingola jo har roz badan mein aae !
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