जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई
डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ।
बदले हैं अर्थ
शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ।
सपनों में मीत
बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ।
जीवन की ढलने लगी सांझ।
मैं अखिल विश्व का गुरू महान, देता विद्या का अमर दान, मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान। मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे
चौराहे पर लुटता चीर प्यादे से पिट गया वजीर चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ? राह कौन सी जाऊँ मैं? सपना जन्मा और
किसी रात को मेरी नींद चानक उचट जाती है आँख खुल जाती है मैं सोचने लगता हूँ कि जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का आविष्कार
ऊँचे पहाड़ पर, पेड़ नहीं लगते, पौधे नहीं उगते, न घास ही जमती है। जमती है सिर्फ बर्फ, जो, कफन की तरह सफेद और, मौत
लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥
Coded By Brahma
2020 - ∞
ॐ