हनुमान को श्राप था कि वे अपनी शक्ति भूल जाएं जिसके बाद वे सामान्य जीवन जीने लगे थे!
उन्हें, उनके शौर्य के पुराने प्रसंग याद दिलाने पर ही अपनी शक्ति का भान होता था !
भारत भी , अपनी शक्ति भूल चुका है!
एक गहरी साज़िश के तहत हमें हमारा अतीत भुलाया गया है !
लार्ड मैकाले ने 1835 में कहा था कि ..
‘भारत का आधार उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है , हमें चाहिए कि हम उसे नष्ट कर दें ..और उन्हें ऐसी शिक्षा दें कि वे अपने
अतीत के वैभव को को भूल जाएं और ..हम अंग्रेजों के ज्ञान विज्ञान को भारत से श्रेष्ठ माने , अन्यथा भारत पे कब्जा करना असम्भव है !’
अंग्रेजों का यह नुस्खा कारगर रहा !
आज भी भारत के so called बुद्धिजीवी, लुटियंस, वही अंग्रेजों के सिखाए को दोहरा रहे हैं , जैसे –
“अतीत को छोड़ो , भविष्य को देखो”
अतीत को स्वर्णिम बताना ,अतीतगामी होना है”
“भारत की धार्मिक मान्यताएं , रीति रिवाज़ , परम्पराएं दकियानूसी हैं ”
“भारत की धर्मिक किताबें ..गल्प कथा हैं ”
“हर प्रश्न का उत्तर विज्ञान और मनोविज्ञान में निहित है , धर्म या दर्शन में नहीं ”
“आत्मा , पुनर्जन्म , मोक्ष , अपवर्ग ..आदि कुछ नहीं होता ”
आदि ..आदि ..!
विवेकानंद ने शिकागो में कहा था –
“मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिकता का पाठ पढ़ाया है “
उनके एक-दो उद्धरण और देखें –
” history itself bears testimony to the fact all the soul elevating ideas and the different branches of the knowledge that exist in the world are found on proper investigation to have their roots in India.”(Vivekananda)
“each Nation has a theme everything else is secondary. India’s theme is religion .”(Vivekananda)
जे. कृष्णामूर्ति की चिंता थी –
“the Indian mind for centuries has probed into the nature of the self and Cosmos. But is now materialistic. what has happened to the ancient wisdom of the mind ? “(J.Krishnamurti)
ओशो ने कहा था ..
– “भारत का भाग्य , मनुष्य की नियति है ! भारत कोई भूखंड नही है , सत्य को पा लेने की अभीप्सा है ! “
यही स्वर श्री अरविंद का भी था !
… ये सब भारत के प्रखर , मेधावी लोग थे !
… क्या आजकल ये अंग्रेज परस्त बुद्धिजीवी इनसे ज़्यादा समझ रखते हैं ??
ये हम भारतवासियों के विवेक और अनुभव पर निर्भर है ..कि हम किनकी बातें माने ?
क्या कारण है कि हमारे बच्चे अकबर और शाहजहाँ के नाम तॊ जानते हैं ..मगर कनिष्क और समुद्रगुप्त का नाम नही जानते ?
शेक्सपियर को जानते हैं .लेकिन कालिदास को नही जानते ??
मैकियावेली , मार्क्स को जानते हैं ..लेकिन चाणक्य को और वशिष्ठ को नही ??
एक षडयंत्र के द्वारा हम पर पाश्चात्य वाद थोपा गया …और हमें अपने गौरवशाली अतीत से काट कर रखा गया है !
..हमें बताया गया कि डार्विन , फ्रायड और यूरोप के तमाम आविष्कारक वैज्ञानिक ..हम भारतीयों से अधिक प्रखर और मेधावी हैं !
हमारे अवचेतन में ये झूठ बैठाल दिया गया कि विज्ञान ही विश्व का भविष्य है , और हम विज्ञान विरोधी हैं !
जबकि सच यह है कि भारत सदा से वैज्ञानिक चिंतना वाला देश रहा है !
भारत , विज्ञान के विरोध में क़तई नही है ….बल्कि हमारे तॊ खून में , नस्ल में ही विज्ञान है !!
भारत में हर दूसरा बच्चा ..कलपुर्जों में रस लेता है !
हमारी “जुगाड़ टेकनीक” हमारे वैज्ञानिक चित्त को ही दर्शाती है !
..जैन दर्शन , कणद का वैशेषिक दर्शन , सांख्य-योग दर्शन ..आदि के सारे सोपान विज्ञानसम्मत हैं !
चिकित्सा शास्त्र में चरक , सुश्रुत से लेकर भौतिकी में वराहमिहिर , आर्यभट्ट तक हमारी पूरी चिंतना ..विज्ञान , गणित और खगोलिकीय पे आधारित है !!
गणित और तकनीकी ..भारत के डी.एन.ए. में बसी है !
ईसवीं से दो सौ वर्ष पूर्व बने 84000 स्तूप क्या बिना किसी विज्ञान के बन गए थे ??
भारत में चिकित्सा , भौतिकी , गणित , तर्क शास्त्र भाषा , व्याकरण , ज्योतिष , छंद , निरुक्त वगैरह ही नही ..बल्कि नृत्य , नाट्य , संगीत और चित्रकला जैसी ललित कलाएँ भी समृद्धि के शिखर पर पहुंचीं , यहां तक कि काम-कला और पाक कला भी !!
………किन्तु बाह्य समृद्धि का अतिरेक ..अंततः अंतर्मुख हो ही जाता है …और तब प्रश्न उठते हैं कि ,
… “और क्या ?? ”
जीवन का ध्येय क्या है ? हम कौन हैं ?
जीवन क्या है ? मृत्यु क्या है ? ..ये विराट अस्तित्व किस हेतु है ???
इन्हीं अस्तित्वगत प्रश्नों ने
.. भारत को सत्य की खोज की ओर अभिमुख कर दिया ..और भारत की सबसे प्रखर मेधा , आत्मोन्मुख हो गई !
लिहाज़ा , भारत में विज्ञान के साथ-साथ आत्म ज्ञान , बोध और साधना का अनूठा दर्शन विकसित हुआ !!
वेद , उपनिषद , गीता , षड्दर्शन , अद्वैतवाद , जैन, बौद्ध दर्शन आदि विश्व को भारत की अनुपम देन हैं !
हमारे यहां तंत्र , योग , ज्ञान , कर्म , भक्ति और साधना हज़ारों ..पद्धतियां विकसित हुईं !
……मगर इसका एक दुष्परिणाम भी हुआ !
हमारी आत्मोन्मुखता , सहिष्णुता , सहनशीलता, अहिंसा और सर्व समन्वय की चिंतना ही हमारे लिए अभिशाप बन गई !!
हम पर निरंतर आक्रमण हुए और हमारा बहुत कुछ लूट लिया गया !
मगर इस भूखंड की ग्राह्यता ऐसी थी कि जो भी आक्रमणकारी आया , यहीं का हो गया ! निरअपवाद रूप से लगभग सभी आक्रमण कारी भारतीय ही हो गए !
…लिहाजा …हमारे यहां हज़ारों भाषाएँ , बोलियाँ , रिवायात और विविधतापूर्ण सांस्कृतिक छटा का एक अनोखा इंद्रधनुष प्रकट हुआ !
जो विश्व में अतुल्य , अद्वितीय , अनुपमेय है !
हां , यह भी सच है कि इन हज़ार बर्षों की अस्त व्यस्तता के चलते भारतीय समाज में बहुत सी कुरीतियाँ और कुप्रथाएं भी प्रवेश कर गईं हैं !
वे हट रही हैं , हटना चाहिए भी !!
लेकिन जो श्रेष्ठ है .वो बचे रहना चाहिए , संरक्षित रहना चाहिए !!
हां , यह भी सच है कि भारत एक राष्ट्र के रूप में कभी लगातार संगठित नही रहा है !
मज़बूत और प्रसार वादी राजाओं ने इसे कुछ समय तक एक छत्र के नीचे रखा , मगर उनकी सत्ता ढहते ही यह पुनः बिखर गया !
( कनिष्क के राज्य में चीन और रूस का कुछ हिस्सा भी सम्मिलित था !अशोक का साम्राज्य ईरान से लेकर बर्मा तक फैला हुआ था !)
मगर , तमाम बिखराव के बावज़ूद भी , इस देश की जिजीविषा लगभग एक सी ही रही है !
…सारी विविधताओं के बाद भी आध्यात्मिक उन्नयन और उत्सवधर्मिता ही भारत भूखंड की मूल धारा रही है !
यह भी नही भूलें कि क्षेत्रीय स्वार्थलोलुपता अतीत में भी भारत का महारोग रही है ! और इस रोग के कारण ..भारत बारम्बार अशक्त और ग़ुलाम हुआ है !
बेशक आज का भारत अब उतना बड़ा नही है ! इसके अनेक टुकड़े हो चुके हैं !
मगर जो है, वो कम नही है !
अब भारत एक राष्ट्र है और लोकतांत्रिक भारत को 70 साल हो चुके हैं ! और इस नए भारत को लेकर ही हमें भविष्य के स्वप्न बुनने हैं !
क्षमा चाहूंगा , कि ये आर्टिकल लम्बा हुआ जा रहा है ! ? ?
…कृपया मेरे साथ बने रहें , कोशिश करूँगा कि इसे अधिक विस्तार न दूं ..किंतु जो आवश्यक है ..वह तॊ लिखना ही होगा !! ??
यह सच है कि ईसवीं 1600 के बाद जो विश्व बना है ..उसमें यूरोप का योगदान अधिक है । औद्योगिकीकरण और उसके परिणामस्वरूप होने वाले नवीन आविष्कारों ने समूचे विश्व की दिशा बदल दी है ! जिसके चलते विश्व का सामाजिक ताना-बाना बदल गया है !
विश्व में नए सामाजिक दर्शन भी विकसित हुए हैं !
..वामपंथ , औद्योगिक क्रांति की प्रतिक्रिया थी !
फ्रांस क्रांति से उठी लोकतंत्र की अवधारणा दरअस्ल , ..सामंतवाद , राजतंत्र शाही की प्रतिक्रिया थी !
साम्राज्यवाद और औद्योगिकीकरण की दौड़ में यूरोप ने ताबड़तोड़ आविष्कार किए ! और इधर गत 300 वर्षो में विश्व को पूरा बदल दिया !
…..मगर बाहरी सुख सुविधाओं , गैजेट्स , टेक्नॉलजी और संचार के अलावा ..मानवीय चेतना के भीतरी पहलुओं पर कोई ध्यान नही दिया गया !!
हालांकि इसके कुछ अच्छे पहलू भी थे !
नव भौतिकी , मेडिकल साइंस और मनोविज्ञान भी आधुनिक विश्व को यूरोप की देन है !
पश्चिम का दर्शन सदा से पदार्थवादी रहा है !
लेकिन , मात्र विज्ञानोन्मुखता मानवता के लिए घातक है ..क्योंकि जीवन भौतिक व अभौतिक दोनों है !
फूल की पंखड़ी भौतिक है …लेकिन फूल का एहसास अभौतिक है !
मानव मष्तिष्क और शरीर के हिस्से ..सिर्फ़ अनुभवों के प्रकटीकरण का प्लेटफॉर्म हैं !
अनुभव , मष्तिष्क नही है , वह मष्तिष्क में प्रकट भर होता है !
भारत , अभौतिक की यात्रा है !
अभौतिक को अस्वीकारना ..आधे अस्तित्व का अस्वीकार है !
यह अधूरा आदमी है !
मनुष्य की चेतना के अनेक तल हैं ! पश्चिम की पहुंच ..विज्ञानमय कोश से आगे नही है !
भारत ..आनन्दमय कोश की खोज है !
पश्चिम , भौतिकता के सैचुरेशन पॉइंट पर आकर खड़ा हो गया है !
वह आधुनिक विश्व में अपने योगदान की पूर्ण आहुति डाल चुका है ! मगर इस यज्ञ से सिर्फ नफ़रत और हिंसा का धुंआ ही उठा है !
अब भारत के योगदान की बारी है !!!
भारत , विश्व को इस घुटन भरे धुंए से बाहर निकाल सकता है !
भारत का दर्शन , सांस्कृतिक विरासत और अध्यात्म ही विश्व को भारत का बड़े से बड़ा contribution होगा !
भारत का दर्शन है कि चेतना की उपलब्धि ही मनुष्य का अंतिम अभीष्ट है !
चेतना की उपलब्धि ही विश्व की दिशा है , और चेतना का अभाव ही सब असमानता , हिंसा और दमन और प्रभुत्व की कामना की जड़ है !!!
अब तॊ इधर विज्ञान ने भी जान लिया है कि ..पदार्थ , अंततः चेतना ही है !
मगर उस चेतना में पहुंच की विधि उसके पास नही है !
विज्ञान अपने सैचुरेशन पॉइंट पर खड़ा है ! यहां से आगे की छलांग , विज्ञान के लिए भी अध्यात्म ही है !
क्योंकि विज्ञान सिर्फ़ उसे ही जान सकता है जो मैटर है ,पदार्थ है , यानि की ऑब्जेक्ट है !
क्योंकि विज्ञान , दृष्य की खोज है ..जबकि अध्यात्म ..दृष्टा की उपलब्धि है !
भारत की पूरी यात्रा , सब्जेक्ट की यात्रा है ! अपदार्थ की यात्रा है ..इसे समझ लें !
और सब्जेक्ट के जानते ही , ऑब्जेक्ट का पूरा गणित जाना जा सकता है !
लेकिन “सब्जेक्ट “को ‘ऑब्जेक्ट’ नही बनाया जा सकता ! कोई उपाय ही नही है !
जितनी खोज पश्चिम ने ऑब्जेक्ट की की है ..उतनी ही खोज भारत के मनस्वियों ने सब्जेक्ट की की है ..और इस सब्जेक्टिव अनुभव को प्राप्त करने की विधियाँ भी ईजाद की हैं !
सारी फिजिक्स , केमिस्ट्री , बाइयालजी , मनोविज्ञान ..आख़िरकार सब्जेक्ट पर आकर रूक जाते हैं …..क्योंकि सब्जेक्ट को ऑब्जेक्टिव तरीके से नही देखा जा सकता !
निपट शांति , विचार शून्यता , अप्रयास से ही उसमें पहुंच संभव है !!!
भारत के पास इसका पूरा महाविज्ञान मौज़ूद है !
सारी बाहरी व्यवस्थाएं ..ऊपरी ईलाज मात्र हैं , चैतन्य की उपलब्धि स्थायी ईलाज है !
भारत , ..प्रेम , शांति , अभय और सौंदर्य की खोज है !
पश्चिम सारे संसाधन जुटा लेने के बाद भी अवसाद में है …भारत संसाधन हीन होकर भी चैतन्य और प्रफुल्लित है !
…क्योंकि पश्चिम ने बाहर की यात्रा की ..और भारत ने भीतर की !!
यही कारण है कि पश्चिम के पास भव्य स्टेज तॊ है ..मगर ‘नृत्य’ नही है !!
..साउंड सिस्टम तॊ है .मगर ‘गीत’ नही है !
क्योंकि पश्चिम का पूरा ज़ोर व्यवस्था पर है ..जबकि भारत का “अवस्था” पर !
इसीलिए ,
पश्चिम व्यवस्था है ..पूरब संस्कृति है !
पश्चिम के पास पदार्थ का विज्ञान है …भारत के पास चेतना का विज्ञान है !
पश्चिम के पास शरीर का विज्ञान है …भारत के पास आत्मा का महाविज्ञान है !
पश्चिम के पास “हाऊस” है ,
भारत के पास ‘होम’ है !
किन्तु ,
भारत को भी सनद रहे कि .. वे पद्धतियां और कर्मकांड जो भीतर जाने में बाधक हैं और जिनके नाम पर धंधा चल रहा है ..उन्हें हटाया जाना भी ज़रूरी है !
अगर धर्म और सम्प्रदाय इस खोज में विष डालते हैं तॊ उन्हें भी उजागर किया जाना चाहिए !
…किन्तु ,
मनुष्य को मात्र विज्ञान उन्मुख मत कीजिए !
उसे आत्मज्ञान उन्मुख भी कीजिए !
ऊपर , लेख के शुरूआत में मैंने लिखा था ..हनुमान को अपनी शक्ति का विस्मरण हो गया था !
भारत भी अपना अतीत विस्मृत कर बैठा है !
बेशक , अतीत का बोझ मत रखिए सिर पर ..मगर अतीत की ख़ुशबू , ताज़गी और ऊर्जा ज़रूर बनाए रखिए !
हम खुशकिस्मत हैं कि हमारे पास ऐसा गौरवशाली अतीत है !
यूरोप और पश्चिम को तॊ ये नसीब ही नही है !
ईसवीं पूर्व की सभ्यताएं दो-चार ही हैं !
मगर उनमें भी यूनान , मिस्र की सभ्यताएं मिट गईं ! उनके दर्शन, स्थापत्य और विज्ञान में विस्तार न आ सका !
भारत एक मात्र ऐसा देश है ..विश्व में जिसका विकास क्रम कभी रुका नही !
वेदों के साथ यहां षड्दर्शन और जैन ..बौद्ध जैसे दर्शन विकसित हुए और उनका उत्तरोत्तर विकास होता गया !
हमारे पास वेद और उपनिषदों का महान ज्ञान मौज़ूद है !
योग , आयुर्वेद , संगीत , गायन , नृत्य , काव्य , नाट्य आदि हर विधा की समृद्ध परम्परा है !
…….हम हनुमान की तरह इनका स्मरण करें ..और अपनी प्रसुप्त शक्ति को जागृत करें !
अब वक़्त आ गया है कि हम भारत के खजाने को विश्व के सम्मुख खोल दें !
वह खज़ाना जो ईसवीं से 5 हज़ार साल पीछे वेदों , उपनिषदों , सूत्रों , स्मृतियों और अन्य दर्शन परम्पराओं में बिखरा पड़ा है !
वह अतीत , जिसमें सिर्फ़ अध्यात्म ही नही , बल्कि नव-भौतिकी के दिशा निर्धारक सूत्र अब भी छिपे पड़े हैं !
इस्लाम और ईसाईयत को जो देना था ..दे चुके !
अब भारत की बारी है !
ये दोनों धर्म, एक व्यक्ति -एक क़िताब पे आधारित code of conduct मात्र थे !!
जबकि भारत कोई धर्म नही है ,
वह तॊ दर्शन की , सत्य की यात्रा की ..एक अखंड, सनातन परम्परा है !
सत्यान्वेषण की अनन्त यात्रा है !
इसमें असंख्य ऋषिओं , साधकों , तपस्वियों का योगदान है !
पश्चिम की ऊब और डिप्रेशन का ईलाज भारत के पास है !
ये सच है कि आधुनिक विश्व की भौतिकवादी दौड़ में भारत पिछड़ गया है ! इसीलिए , भारत को चाहिए कि रिसर्च और आविष्कार पर ज़्यादा निवेश करे !
और पहले विज्ञान का महारथी बनकर ..यूरोप को उसकी भाषा में ज़वाब दे ! और फिर चैतन्य के महाविज्ञान से विश्व को आत्मोन्मुखी बनाने
में अपना योगदान दे !
यही भारत के साथ विश्व का भविष्य है !
पूंजीवाद , साम्यवाद और समाजवाद के कालीनों के नीचे छिपी बदबूदार गर्द उजागर हो चुकी है !
समूचा विश्व अब “समन्वयवादी गणतन्त्र” की ओर देख रहा है !
अब सब दिशाओं से एक ही जयघोष विश्व भर में गुंजाएमान होने को है !
और वह है –
जन गण मन अधिनायक जय हे ,
भारत भाग्य विधाता !!