चिंता और तनाव ना लें !
चिंता व तनाव हमारे लिए फायदेमंद भी हैं और नुकसानदेह भी । किसी भी कार्य के प्रति चिंता व तनाव का होना, हमारे मन में उस कार्य को करने के लिए एक दबाव बनाता है, जिससे वह कार्य सहजता से हो जाता है । हालाँकि बिना चिंता व तनाव के भी कार्य किया जा सकता है, फिर भी अधिकांश लोग अपनी चिंता व तनाव को कम करने के लिए ही कार्य करते हैं ।
कार्य करने से उनकी चिंता व तनाव कम होती है, जिसके कारण वो सुकून अनुभव करते हैं । जो लोग ज्यादा चिंता व तनाव लेते हैं और उसके कारण ठीक से कार्य नहीं कर पाते, वे अधिक परेशान होते हैं ; क्योंकि चिंता व तनाव उनके मन में बस जाते हैं और ये ‘उनकी शारीरिक व मानसिक बीमारियों के उत्पन्न होने का भी एक कारण बन जाते हैं ।
चिंता व तनाव हमारे शरीर व मन पर किस तरह अपना प्रभाव डालते हैं और इनसे तिपटने का क्या उपाय है इस संदर्भ मे एक बड़ा ही मनोरंजक प्रसंग है…
एक मनोवैज्ञानिक छात्रों को तनाव से निपटने का उपाय बताने के लिए एक प्रदर्शन कर रहे थे । इसके लिए जब उन्होंने पानी का एक गिलास उठाया तो सभी छात्रों ने यह सोचा कि वे उनसे यह पूछेंगे की गिलास आधा खाली है या आधा भरा हुआ, लेकिन उन्होंने छात्रों से इसकी जगह दूसरा प्रश्न पूछा, उन्होंने पूछा- पानी से भरा हुआ जो गिलास मैंने पकड़ा है, वह आपके अनुसार कितना भारी है ?
छात्रों ने अपना उत्तर देना शुरू किया, कुछ ने कहा… थोड़ा-सा, तो कुछ ने कहा कि शायद आधा लीटर तो वहीं कुछ ने कहा शायद एक लीटर । इस पर वे बोले कि मेरी नजर में इस गिलास का कितना भार है यह माने नहीं रखता, बल्कि यह माने रखता है कि इस गिलास को मैं कितनी देर तक पकड़ सकता हूँ अगर मैं इसे एक या दो मिनट पकड़े रहूँगा, तो यह हलका लगेगा ।
अगर मैं इसे एक घंटे पकड़े रहूँगा तो इसके भार से मेरे हाथ में थोड़ा-सा दर्द होगा और अगर मैं इसे पूरे दिन पकड़े रहूँगा, तो इससे मेरे हाथ एकदम सुंन्न पड़ जाएँगे और पानी का यही गिलास जो शुरुआत में हलका लग रहा था, इतना भारी लगने लगेगा कि गिलास हाथ से छूटने लगेगा । तीनों ही दशाओं मे पानी के गिलास का भार नही बदलेगा लेकिन जितनी देर मैं इसे पकड़े रहूँगा उतना ही ज्यादा मुझे इसके भारीपन का एहसास होगा ।
यह बात जानकर सभी छात्र आश्चर्य से एक-दूसरे को देखने लगे । फिर उन मनोवैज्ञानिक ने उनसे आगे कहा कि आपके जीवन की चिंताएँ और तनाव काफी हद तक इस पानी के गिलास के वजन की तरह ही हैं यदि इनके बारे में थोड़े समय के लिए सोचो तो कुछ नहीं होता, थोड़े ज्यादा समय के लिए सोचो तो हलके सिरदरद का एहसास होना शुरू हो जाएगा और वहीं अगर आप इनके बारे में पूरा दिन सोचेगे तो आपका दिमाग निष्क्रिय हो जाएगा।
चिंता और तनाव ना लें !
वास्तव में कोई भी घटना या परिणाम हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम उसे किस तरह संभालते हैं, यह हमारे हाथ में है चिंता व तनाव उन पक्षियों की तरह हैं, जिन्हें हम अपने आस-पास उड़ने से नहीं रोक सकते लेकिन उम्हें अपने मन में घोसला बनाने से तो नियिचत ही रोक ही सकते हैं। इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि थोड़े समय के लिए की गई चिंता या तनाव हमें नुकसान नहीं पहुँचाता बल्कि अक्सर यह हमारे लिए फायदेमंद ही होता है ।
इसके कारण हम अपने कार्यों के प्रति सजग होते हैं, अच्छे से अपने कार्यों को करते हैं, लेकिन ज्यादा चिंता या तनाव होने पर हमारी कार्यक्षमता पर इसका प्रभाव पड़ने लगता है, जिसके कारण हम ठीक से अपना कार्य नहीं कर पाते । ज्यादा चिंता करने व अधिक तनाव लेने से मन में थकावट होती है, नींद नहीं आती है, भूख या तो कम हो जाती है या बढ जाती है, इससे नकारात्मक सोच में भी वृद्धि होती है, मन में आशंकाएँ बढ जाती हैं, शरीर व मन की रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है, जिसके फलस्वरुप हमारे शरीर व मन में धीरे-धीरे रोग पनपने लगते हैं।
उपाय बस एक ही है कि हम चिंता व तनाव को अपने मन मे न बसने दें चिंता प तनाव उत्पन्न करने वाले कारण हमारे जीवन में आएँ और चले जाएँ, लेकिन हमारे इर्द-गिर्द इनका बसेरा न हो । इसके लिए चिंता व तनाव को दूर करने के लिए जो भी यथासंभव उपाय हों उन्हे अपनाया जाए और जो उपाय हम नहीं कर सकते उनके लिए हम फिक्र न करें ।
चिंता एक तरह की फिक्र है, जो हमारे मन में उपजती है और फिर हम उसके बारे में सोचते चले जाते हैं, चिंता कभी भी सकारात्मक नहीं होती बल्कि हमारे मन में नकारात्मकता की बाढ़-सी ले आती है । चिंता करने वाला व्यक्ति उसे दूर करने के लिए इतना प्रयासरत नहीं होता जितना चिंता करने में लगा रहता है ।
किसी भी बात पर चिंता करने से धीर-धीरे हमें चिंता करने की आदत हो जाती है, लेकिन यदि चिंता को अपने मन से भगाना है, तो इसके लिए हमें अपने मन के सोचने की दिशा को मोड़ना होगा और स्वयं को किसी महत्त्वपूर्ण कार्य में व्यस्त करना होगा; क्योंकि जब भी कोई व्यक्ति किसी कार्य में स्वयं को लगाता है, तो वह उस कार्य को करने के दौरान चिंता नहीं करता ।
कारण यह है कि चिंता व कार्य, दोनों एक साथ नहीं रह सकते । चिंता करने के दौरान कार्य नहीं होता, इसलिए अक्सर खाली समय में लोग चिंता करते हैं ; क्योंकि कार्य करने के दौरान मन में कार्य की योजना होती है न कि चिंता ।
इसी तरह तनाव मन में उत्पन्न एक ऐसा दबाव है
जो किसी कार्य को करने के लिए उत्पन्न होता है यदि हमारे सामने बहुत सारे कार्य हैं और उन्हे समय पर पूरा करना जरूरी है, तो जब तक उसका कार्य पूरा नहीं होता, तब तक उसे तनाव का अनुभव होता है और जब कार्य पूरा हो जाता है, तो उसका तनाव भी समाप्त हो जाता है
प्राय: हमारे जीवन में बहुत सारे ऐसे कार्य होते हैं , जिन्हें पूरा करने के लिए मन में तनाव होता है, लेकिन हर समय तनाव लिये रहना हमारे लिए अच्छा नहीं होता । तनाव एक तरह से मन को रबर की तरह खींचने के समान है ।
जिस तरह रबर यांनी इलास्टिक को हम खींचते हैं और यदि इसे थोड़ी देर के लिए खींचते हैं , तो वह वापस अपनी अवस्था में आ जाती है, थोड़ी ज्यादा देर के लिए खींचते हैं, तो वह अपनी अवस्था से ज्यादा बड़ी हो जाती है, लेकिन यदि उसे क्षमता से अधिक खींचते हैं , तो वह टूट जाती है और फिर पुनः अपनी अवस्था में कभी वापस नहीं आ पाती ।
कुछ इसी तरह जब हम अपनी क्षमता से अधिक मन पर तनाव डालते हैं , तो वह भी एक तरह से टूट-सा जाता है और इसका प्रभाव हमारे शरीर व मन, दोनों पर पड़ता है।इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जिसे चिंता व तनाव न घेरते हों, लेकिन समझदार वही है , जो इनके घेरे से स्वयं को बाहर निकालने की कला जानता हो । वही व्यक्ति सुखी होता है और प्रत्येक कार्य में सफल होता है ।