व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है । परिवार में रहकर ही व्यक्ति सेवा, सहकार, सहिष्णुता आदि मानवीय गुणों को सीखता है और उन्हें अपने जीवन में धारण करता है ।
इसलिए परिवार को व्यक्ति निर्माण की प्रथम पाठशाला भी कहा गया है । परिवार में यदि सादगी, संतोष, सच्चरित्रता व सहयोग जैसे सद्गुणों से भरा-पूरा माहौल है तो उसमें पलने, बढ़ने और रहने वाले लोग स्वत: ही उन सद्गुणों को सीखने व अपने जीवन में जीने लगते हैं ।
ऐसे आदर्श परिवार से ही समाज व राष्ट्र को सभ्य, सुशील, सच्चरित्र व सदाचारी नागरिक प्राप्त होते हैँ; जिनसे कोई भी समाज व राष्ट्र समृद्ध, स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है । यदि परिवार में कलह, हिंसा, असहयोग, असहिष्णुता आदि दुर्गुणों से भरा-पूरा माहौल है तो उसमें रहने वाले, पलने वाले अन्य सदस्य भी उससे प्रभावित हो तदनुरूप जीवन जीने लगते हैं ।
आज़ अधिकांश परिवारों में लगभग यही स्थिति देखने को मिलती है, जो वास्तव में चिंताजनक है । आज़ परिवारों में प्रेम की आवश्यकता है । यदि परिवार में प्रेम है तो ऐसा परिवार वास्तव में एक मंदिर है और उसमें रहने वाले लोग देवता एवं देवियाँ बन जाते हैं ।
परिवार को स्वर्ग बनाने के लिए परिवार के हर सदस्य में प्रेम व सहकार की भावना बलवती होनी चाहिए; क्योंकि प्रेम से भरे हदय सरोवर में ही वे मनमोहक पुष्प खिल सकते हैं, जिनकी महक से पूरा परिवार महक उठता है, फिर परिवार से समाज व समाज से राष्ट्र महक उठता है ।
परिवार में यदि जप, तप, यज्ञ, योग, सत्संग व स्वाध्याय आदि का नियमित क्रम चल पड़े तव निविचत ही परिवार के हर सदस्य के हदय में ज्ञान व प्रेम के पुष्प खिल उठेंगे, पूरा परिवार उनकी महक से, उनकी भीनी-भीनी खुशबू से महक उठेगा। एक परिवार से निकली खुशबू से दूसरा परिवार, फिर उससे तीसरा और इस प्रकार मूरा समाज सद्गुणों व आदर्शों की भीनी-भीनी महक से महक उठेगा, खिल उठेगा ।
अत: परिवार को तपोवन बनाने की आवश्यकता है, जिसमें रहने वाले लोग तप की अग्नि में तपकर निखर सकें, चमक सकें, दमक सकें । गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा व सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है ।
साधना, संयम व सहिष्णुता के अभाव में ही आज़ आएदिन परिवारों में कलह होती रहती है । आज हर परिवार कलह से परेशान है । परिवार निर्माण के लिए संत कबीर ने भी परिवार में संयम व सहिष्णुता जैसे गुणों को आवश्यक माना है ।
इस संदर्भ में एक कथा आती है कि एक बार पारिवारिक कलह से परेशान होकर एक व्यक्ति संत कबीर के पास पहुँचा । उसने संत कबीर से पूछा …” ‘ मान्यवर ! मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि परिवार में कलह व क्लेश क्यों होता है ? और इसे केसे दूर किया जा सकता है ? ‘ ‘कबीर दास जी ने व्यक्ति के प्रश्न सुनकर अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा…’ ‘ जरा लालटेन जलाकर लाना और साथ में कुछ मीठा भी लाना ।”
उस व्यक्ति ने सोचा कि अभी दोपहर का समय है, फिर कबीर दास जी अपनी पत्नी को लालटेन जलाकर लाने को क्यों कह रहे हैं ? उसने देखा उनकी पत्नी भी लालटेन जलाकर दे गई और साथ में नमकीन भी रख गई । वह व्यक्ति यह देखकर हैरान था कि दोपहर में लालटेन जलाकर लाई जा रही है और मीठे की जगह नमकीन परोसा जा रहा है । कबीर ने अब उस व्यक्ति की ओर देखा और पूछा-‘ ” अब आपकी समस्या का समाधान हो गया या अभी भी कुछ संशय है ? ‘ ‘ उसने मन-ही-मन सोचा, कैसा अजीब बरताव है कबीर जी का, कैसा मजाक है यह ? उस व्यक्ति ने कहा…’ ‘ मान्यवर ! मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया । ‘
‘ तब कबीर दास जी ने कहा-” ‘ जब मैंने लालटेन मँगवाई तो मेरी पत्नी उसे लाने से मना कर सकती थी । मुझे फटकार सकती थी, मुझसे यह पूछ सकती थी कि दोपहर में लालटेन क्यों जलाऊँ, इसकी क्या आवश्यकता है ? लेकिन नहीं, उसने सोचा की ज़रूर किसी काम के लिए लालटेन मँगवाई होगी । जब मीठा माँगने पर वह नमकीन देकर चली गई, तब मैंने सोचा कि हो सकता है घर में अभी कोई मीठी चीज़ न रही होगी, इसलिए नमकीन ले आई हैं और इसलिए मैं चुप रहा ।
इसमें तकरार कैसी ? विवाद कैसा ? कलह-क्लेश कैसा ? आपसी विश्वास बढाने और तकरार में न फँसने से ही कलह और क्लेश दूर रहते हैं । उन्हें पनपने का मौका ही नहीं मिलता । ‘ ‘ उस व्यक्ति को समाधान मिल गया था । वह लौटकर घर आया और एक नई दृष्टि के साथ परिवार में सुखपूर्वक रहने लगा ।
आज सचमुच हर परिवार में संयम, सहिष्णुता व आपसी विश्वास जैसे सद्गुणों की आवश्यकता है ; जिनसे हम न सिर्फ कलह-क्लेश से मुक्त रह सकते हैं, बल्कि परिवार में शांति, समरसता, समृद्धि, सौभाग्य व खुशहाली ला सकते हैं ।
ऐसे दिव्य वातावरण वाले परिवार के आँगन में ध्रुव, प्रह्लाद, नचिकेता, शंकर, नरेंद्र, सुभाष, भगत सिंह, आजाद, राजगुरु, लाल बहादुर शास्वी, सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे पुष्प खिल सकते हैं, जिनसे पूरा समाज व राष्ट्र समृद्ध, शक्तिशाली व खुशहाल बन सकता है अन्यथा कलह, क्लेश से भरे परिवार में ध्रुव, प्रह्लाद, शंकर आदि जैसे असंख्य पुष्प खिलने से पूर्व ही काल-कवलित होते रहेंगे, मुरझाए रहेंगे ।
आज हर परिवार को तपोवन बनाने की महती आवश्यकता है; जिसमें संयम, सेवा व सहिष्णुता की अखंड साधना की जा सके और समाज व राष्ट्र को सभ्य, समृद्ध व शक्तिशाली बनाया जा सके ।