भस्म करने में सक्षम लपलपाती ज्वालाएं और स्याह अंधेरे में बदबू के थपेड़ों के बीच धधकते अग्नि के दावानल…
विश्व की सभी दंतकथाओं में नर्क का जिक्र कुछ इसी प्रकार किया जाता है लेकिन नर्क सरीख़ी जगहों के दीदार के लिये देहत्याग की आवश्यकता नही…नर्क सरीखें कुछ मंजर यहीं अपनी धरती पर भी बिखरे पड़े हैं…!
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सन 1971…
सोवियत संघ से अलग होने से पूर्व का तुर्कमेनिस्तान…
सोवियत इंजीनियर्स का एक दल पेट्रोलियम की खोज में दरवेजे शहर के रेगिस्तान में मौजूद था…
नेचुरल गैस से परिपूर्ण उस क्षेत्र में भारी-भरकम अमले और ड्रिलिंग यंत्रों से खुदाई जारी थी कि अचानक शायद लापरवाही अथवा मिट्टी की भंगुरता…जमीन भरभरा के गिर पड़ी…
70 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा फुटबॉल फील्ड के बराबर एक विशालकाय गड्ढा उत्पन्न हो गया और इस गड्ढे से मीथेन रिसने लगी।
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यह मीथेन गैस सांस लेने में दिक्कत पैदा करने के कारण आसपास के गांवों में मौजूद लोगों के लिए खतरा बन सकती थी। साथ ही साथ ग्रीनहाउस गैस होने के कारण वातावरण में मीथेन का रिसाव ग्लोबल वार्मिंग रूपी गंभीर खतरा भी था…
इसलिए..इंजीनियर्स की टीम ने आपस मे मंत्रणा करके…इस गड्ढे में आग लगा दी।
वे इंजीनियर्स नही जानते थे कि उस क्षेत्र में कितनी मीथेन मौजूद है…उनका अनुमान था कि शायद कुछ हफ्तों में समूची मीथेन जलाकर यह आग शांत हो जाएगी..
लेकिन… यह आग अनवरत जल रही है।
आज 47 साल के बाद भी…!
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बीते कुछ वर्षों में यह स्थान एक टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित हो गया है।
किसी भी रोशनी से दूर,वीरान रेगिस्तान में,रात के अंधेरे तले नारंगी लपटों से धधकते इस विशालकाय गड्ढे को देख ऐसा प्रतीत होता है मानों यह दंतकथाओं में वर्णित किसी रहस्यमयी लोक का द्वार हो।
शायद इसीलिए इस गड्ढे को स्थानीय निवासियों द्वारा “नर्क का द्वार” कहा जाता है।
विगत 47 वर्षों से नर्क के इस द्वार में अग्नि की लपटें निरंतर लपलपा रही हैं…
कोई नही जानता कि यह आग कब बुझेगी।
शायद सैकड़ों वर्ष…
शायद हजारों वर्ष!!
सन 2013 में नेशनल जियोग्राफिक खोजी दल के
“जॉर्ज कॉरोनिस” एक ऊष्मारोधी पोशाक पहन कर केवलर की रस्सी के सहारे इस गड्ढे के तल में उतरने वाले पहले इंसान थे।
जॉर्ज अपनी इस यात्रा में गड्ढे के तल की मिट्टी के सैम्पल्स भी लाये थे,जिन सैम्पल्स में वैज्ञानिकों ने “जीवित बैक्टीरिया” को पलते पाया था।
जी हाँ.. सुलगती जमीन पर पलते जीवित बैक्टीरिया!
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ब्रह्मांड में ना जाने कितने ग्रह हैं जहां के बेहद अधिक तापमान और विषम वातावरण के कारण हम उन ग्रहों पर जीवन की संभावनाएं नकारते रहे हैं। ये बैक्टीरिया इस बात का साक्षात सबूत हैं कि जीवन विशेष परिस्थितियों का मोहताज नही…
बल्कि अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग ताल पर जीवन का संगीत कहीं भी थिरक सकता है।
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शायद यह सिर्फ नर्क का द्वार ही नही बल्कि एक ऐसा द्वार है जिसका दूसरा सिरा ब्रह्मांड में मौजूद “जीवन की अपार संभावनाओं” के द्वार खोलता है।
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The Door To Hell Could Also Be A Door To Understand Infinite Possibilities Of Life…!
And As Always,
Thanks For Reading!
By – Bhaskar Jha