समझाइश की ज़रूरत बच्चों को नही, अभिभावकों को है !
“हमारे स्कूल में आईए और बच्चों को एक मोटिवेशनल लेक्चर दीजिए !”
बहुत से टीचर्स/प्रिंसिपल अक्सर ये आमंत्रण देते हैं !
मैं उनसे कहता हूं कि बात करने की ज़रूरत बच्चों से नही , बल्कि अभिभावकों से है !
और वो ये कि ,
बच्चों को लेक्चर देना बंद कीजिए !
आपके लेक्चर , आदेश और कमांड की ओवरडोज से बीमार हुए जा रहे हैं बच्चे !!
आपके ..उपदेशों का अतिरेक मितली पैदा कर रहा है उनमें !
यह अति उपदेश, विष बन कर उनकी चेतना को निस्पंद किए दे रहा है !!
हर शिक्षक बच्चे को ज्ञान बांट रहा है !
प्रत्येक रिलेटिव , माता-पिता, परिचित , मित्र ..जिसे देखो ..बच्चों को प्रवचन सुना रहा है !
..वो तॊ अच्छा है कि बच्चे हमें ध्यान से सुनते नही , और हमारे कहे को अनसुना कर देते है !
वर्ना अगर वह हमारे हर उपदेश पर विचार करने लगें , तॊ गंभीर मस्तिष्क रोग से पीड़ित हो सकते हैं !
हम जानते ही क्या हैं जो बच्चे को बता रहे हैं ??
ज़्यादातर पिता और शिक्षक बच्चों के सामने सख़्ती से पेश आते हैं !
उन्हें डर होता है कि कहीं बच्चा मुँह न लग जाए !
अपना नकली रूआब क़ायम रखने की वज़ह से वे , ज़िंदगी भर उन बच्चों के मित्र नही बन पाते !
वे सदैव एक उपदेशक और गुरु की तरह पेश आते हैं !
अच्छे-बुरे की स्ट्रॉन्ग कमांड, ब्लैक एंड व्हाईट की तरह उसके अवचेतन में ठूंस देते हैं !
यही कारण है कि थोड़ा बड़ा होने पर बच्चा ..अगर शराब पीता है ..तॊ उन्हें नही बताता !
वह सिगरेट पी ले, या किसी लड़की के प्रेम में पड़ जाए ..या अन्य किसी नए अनुभव से गुज़रा हो तॊ उनसे शेयर नही करता !
इस तरह बच्चे में एक दोहरा व्यक्तिव पैदा होता है !
हम इतना भय और दिखावा उसमें कूट-कूट कर भर देते हैं कि वयस्क होते-होते बच्चा अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व खो बैठता है !
उसका कैरियर तॊ बन जाता है मगर व्यक्तित्व नही बन पाता !
हम सिर्फ उसके शरीर और सामाजिक व्यवहार को पोषित करते हैं , लेकिन आत्मिक स्तर पर उसके स्वतंत्र विकास की सारी संभावनाओं को मसल कर ख़त्म कर देते हैं !
दरअस्ल , हम सब असुरक्षित और डरे हुए लोग हैं !
हम उनके बाल मन पर अपनी मान्यताओं , परंपराओं और नियम क़ानून का ऐसा पक्का लेप लगा देते हैं कि बच्चे की सारी मौलिकता ही ख़त्म हो जाती है !
और वो जीवनभर अपनी आत्मा का मूल स्वर नही पकड़ पाता !!
हम निपट स्वार्थी मां-बाप , अपने बच्चों को अपने आहत अहं , अतृप्त कामनाओं और अधूरी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बना लेते हैं !
और अंततः हमारा बच्चा एक आत्महीन किंतु मार्कशीट और डिग्रियों से सुसज्जित प्रोडक्ट बन जाता है ..जिसे सरकारी/प्राईवेट संस्थान ऊंची से ऊंची क़ीमत पर खरीद लेते हैं !!
नही , डरें नही !!
बच्चे को इतना बांधकर न रखें !
उसका अपना अलग जीवन है , उसे अपने अनुभव लेने दें !
उसे अपने जीवन की एक्सटेंशन कॉर्ड नही बनाएं !
उसे , उसकी निजता में खिलने दें !
उसे तेज धूप , आंधी , बारिश , सूखा …हर मौसम की मार से जूझने दें !
वर्ना उसका दाना पिलपिला और पोचा रह जाएगा !
उसमें प्रखरता और ओज का आविर्भाव नही होगा !
बच्चे को बुढ़ापे की लाठी ना समझें !
बुढ़ापे की लाठी अगर बनाना है तॊ “बोध” और “जागरण” को बनाएं !
क्योंकि पुत्र वाली लाठी तॊ आपसे पहले भी टूट सकती है !
और आप भी बूढ़े हुए बिना विदा हो सकते हैं !
इसलिए अपने बुढ़ापे की फ़िक्र न करें ,
अपने जागरण की फ़िक्र करें !!
अपने बच्चे पर बोझ न डालें बल्कि अपने “बोध” पर ज़ोर डालें !
बच्चे को समझाईश देने से पहले अपनी ‘अकड़’ और ‘पकड़’ को समझाइश दें !
सिर्फ बच्चा पैदा करने से आप ‘अभिभावक’ नही हो जाते ….और सिर्फ पढ़ाने से आप ‘अध्यापक’ नही हो जाते !
आपका निर्माण ही बच्चे का निर्माण है ..और आपका निदिध्यासन ही बच्चे का अध्यापन है !
समझाइश की ज़रूरत बच्चों को नही , अभिभावकों को है !