Lekh
Shlok
Kavita
Mantra
Bhajan
Sanskrit shloka on Infinity
ओम्! वह अनंत है, और यह (ब्रह्मांड) अनंत है। अनंत से अनंत की प्राप्ति होती है। (तब) अनंत (ब्रह्मांड) की अनंतता लेते हुए, वह अनंत के रूप में अकेला रहता है। ओम्! शांति! शांति! शांति!
Om! That is the whole. This is the whole. From wholeness emerges wholeness. Wholeness coming from wholeness, wholeness still remains.
वह पूर्ण था/है सृष्टी उत्पत्ती के पहले भी, उत्पत्ती के बाद भी यह पूर्ण है , मतलब एक पूर्ण से दुसरा एक पूर्ण पैदा हुआ वह भी पूर्ण ही है । पूर्ण से पूर्ण निकलने के बाद भी जो बचा हुआ है वह भी पूर्ण ही है ! ओम्! शांति! शांति! शांति!
वह परब्रह्म पूर्ण है, पूर्णता से ही पूर्ण उत्पन्न होता है। यह कायाात्मक पूर्ण कारणात्मक पूर्ण से ही उत्पन्न होता है। उस पूर्ण की पूर्णता को लेकर भी यह पूर्ण ही शेष रहता है। हमारे, अनिभौनतक, अनिदैनिक तथा तथा आध्यान्तत्मक तापों (दुखों) की शांति हो।
Aum! That is infinite, and this (universe) is infinite. The infinite proceeds from the infinite. Taking the infinitude of the infinite, It remains as the infinite alone. Aum! Peace! Peace! Peace!