Lekh
Shlok
Kavita
Mantra
Bhajan
Sanskrit shloka on Karma
यदि हंस ही पानी और दूध को अलग करने का काम छोड़ देगा तो ये काम इतनी कुशलता से और कौन कर पाएगा? यदि बुद्धिमान तथा समझदार लोग ही अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाएंगे तो दूसरा कौन निभाएगा?
जो लोग अपना कर्म छोडकर केवल कृष्ण कृष्ण बोलते रहते हैं, वे हरि के द्वेषी हैं ।
- Chapter 4 -
Shlok 10
पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गए थे और जो मुझ में अनन्य प्रेमपूर्वक स्थित रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त उपर्युक्त ज्ञान रूप तप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं॥
- Chapter 3 -
Shlok 8
तू शास्त्रविधिसे नियत किये हुए कर्तव्य-कर्म कर; क्योंकि कर्म न करनेकी अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करनेसे तेरा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा।
तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर; क्योंकि अकर्म की अपेक्षा कर्म श्रेष्ठ है तथा अकर्म से तो तेरा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा ।
आपके लिए जो निर्धारित कार्य है, उसे मन-बुद्धि लगाकर मनोयोगपूर्वक करो। क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही सबसे बढ़िया मार्ग है। और अगर कर्म नहीं करोगे तो जीवनयात्रा-शरीर का निर्वाह करना भी असंभव हो जाएगा।
ନିୟତ କର୍ମ ବା ଶାସ୍ତ୍ର ସମ୍ମତ କର୍ତବ୍ୟ କର୍ମ କରିବା ଉଚିତ କାରଣ କର୍ମ ହୀନ ହେବା ଅପେକ୍ଷା କର୍ମ କରିବା ଶ୍ରେଷ୍ଟତର ତେଣୁ କର୍ମ ନ କଲେ ଶରୀର ରକ୍ଷା ଅସମ୍ଭବ
Do thou perform thy bounden duty for action is superior to inaction and even the maintenance of the body would not be possible for thee by inaction
यानि, उद्यम से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं।
सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।
सभी कार्य परिश्रम से सिद्ध होते हैं न कि सोचते रहने से। जिस प्रकार सोते हुए शेर के मुख में हिरण आदि जानवर स्वयं प्रवेश नहीं करते, अपितु शेर को स्वंय शिकार करना पड़ता है ठीक उसी प्रकार हमें भी वांछित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लगनशील होकर परिश्रम करना चाहिए।
- Chapter 2.3 -
Shlok 32
हर कार्रवाही के लिए एक जवाबी कार्रवाही होनी चाहिए। हर प्रहार के लिए एक प्रति-प्रहार और उसी तर्क से हर चुम्बन के लिए एक जवाबी चुम्बन।
For every action, there should be a counteraction, for every blow a counterblow and by the same logic, for every kiss a counter kiss
- Chapter 5 -
Shlok 2
Just as gold is tested through rubbing, cutting, heating and beating; a man is examined on four (grounds) - liberality, character, efficacy (and) action.
जिस तरह सोने की परख घिसने से, तोडने से, गरम करने से और पिटने से होती है, वैसे हि मनष्य की परख विद्या, शील, गुण और कर्म से होती है।
- Chapter 3 -
Shlok 18
उस (कर्मयोगसे सिद्ध हुए) महापुरुषका इस संसारमें न तो कर्म करनेसे कोई प्रयोजन रहता है और न कर्म न करनेसे ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें (किसी भी प्राणीके साथ) इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थका सम्बन्ध नहीं रहता।
Such self-realized souls have nothing to gain or lose either in discharging or renouncing their duties. Nor do they need to depend on other living beings to fulfill their self-interest.