Lekh
Shlok
Kavita
Mantra
Bhajan
Sanskrit shloka on Sanyas
जिसने प्रथम अर्थात ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, द्वितीय अर्थात गृहस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं किया, तृतीय अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में कीर्ति अर्जित नहीं की, वह चतुर्थ अर्थात संन्यास आश्रम में क्या करेगा?
मनुष्य के जीवन में चार आश्रम होते है ब्रम्हचर्य, गृहस्थ ,वानप्रस्थ और सन्यास। जिसने पहले तीन आश्रमों में निर्धारित कर्तव्य का पालन किया, उसे चौथे आश्रम / सन्यास में मोक्ष के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता है।
यदि जीवन के प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य में विद्या-अर्जन नहीं किया गया, द्वितीय आश्रम गार्हस्थ्य में धन अर्जित नहीं किया गया, तृतीय आश्रम वानप्रस्थ में कीर्ति अर्जित नहीं की गई, तो फिर चतुर्थ आश्रम में संन्यास लेने का क्या लाभ ?यदि जीवन की चारों अवस्थाओं में निर्धारित कर्म किये जाएं, तभी मुक्ति मिल सकती है। जीवन कर्तव्यों से पलायन का नाम नहीं है।