
aise satanaki seva
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ऐसे संतनकी सेवा । कर मन ऐसे संतनकी सेवा ॥ध्रु०॥ शील संतोख सदा उर जिनके । नाम रामको लेवा ॥ क०॥१॥ आन भरोसो हृदय नहि जिनके । भजन निरंजन देवा ॥ क०॥२॥ जीन मुक्त फिरे जगमाही । ज्यु नारद मुनी देवा ॥ क०॥३॥ जिनके चरन कमलकूं इच्छत । प्रयाग जमुना रेवा ॥ क०॥४॥ सूरदास कर उनकी संग । मिले निरंजन देवा ॥ क०॥५॥