
bhakta ko sugama śrī yamune agama oreṃ
Change Bhasha
भक्त को सुगम श्री यमुने अगम ओरें । प्रात ही न्हात अघजात ताकें सकल जमहुं रहत ताहि हाथ जोरे ॥१॥ अनुभवि बिना अनुभव कहा जानही जाको पिया नही चित्त चोरें । प्रेम के सिंधु को मरम जान्यो नही सूर कहे कहा भयो देह बोरे ॥२॥