
bhava bhagati hai jake
Change Bhasha
भाव भगति है जाकें रास रस लीला गाइ सुनाऊं। यह जस कहै सुनै मुख स्त्रवननि तिहि चरनन सिर नाऊं॥ कहा कहौं बक्ता स्त्रोता फल इक रसना क्यों गाऊं। अष्टसिद्धि नवनिधि सुख संपति लघुता करि दरसाऊं॥ हरि जन दरस हरिहिं सम बूझै अंतर निकट हैं ताकें। सूर धन्य तिहिं के पितु माता भाव भगति है जाकें॥