
Dekho mai ye badabagi mora
Change Bhasha
देखो माई ये बडभागी मोर। जिनकी पंख को मुकुट बनत है, शिर धरें नंदकिशोर॥१॥ ये बडभागी नंद यशोदा, पुन्य कीये भरझोर। वृंदावन हम क्यों न भई हैं लागत पग की ओर॥२॥ ब्रह्मदिक सनकादिक नारद, ठाडे हैं कर जोर। सूरदास संतन को सर्वस्व देखियत माखन चोरे॥३॥