
jo pai harihim na sastra gahaum
Change Bhasha
जो पै हरिहिं न शस्त्र गहाऊं। तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतन कहाऊं॥ स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं। इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥ पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सरिता रुधिर बहाऊं। सूरदास, रणविजयसखा कौं जियत न पीठि दिखाऊं॥