
kaham laum kahie braja ki bata
Change Bhasha
कहां लौं कहिए ब्रज की बात। सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥ गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात। परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥ जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब कुसलात। चलन न देत प्रेम आतुर उर, कर चरननि लपटात॥ पिक चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहिं न खात। सूर, स्याम संदेसनि के डर पथिक न उहिं मग जात॥