Apahiz vyatha ko vahan kar rha hu
Change Bhasha
अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ
ये दरवाज़ा खोलें तो खुलता नहीं है
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ
अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी
उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ
वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं
जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ
मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब
तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ
समालोचकों की दुआ है कि मैं फिर
सही शाम से आचमन कर रहा हूँ