Aur kaso taar
Change Bhasha
और कसो तार, तार सप्तक मैं गाऊँ।
ऐसी ठोकर दो मिजराब की अदा से
गूँज उठे सन्नाटा सुरों की सबा से
ठण्डे साँचों में मैं ज्वाल ढाल पाऊँ।
खूँटियाँ न तड़कें अब मीड़ों में ऐठूँ
मंज़िल नियराय, जब पांव तोड़ बैठूँ
मून्दी-मून्दी रातों को धूप में उगाऊँ।
नभ बाहर-भीतर के द्वन्द्वों का मारा,
चिपकाए शनि चेहरे पे मंगलतारा।
क्या बरसा ? मरती धरती निहार आऊँ।
ढीले सम्बन्धों को आपस में कस दूँ,
सूखे तर्कों को मैं श्रद्धा का रस दूँ
पथरीले पन्थों पर दूब मैं उगाऊँ।