Jindagani ka koi maksad nhi hai
Change Bhasha
ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है
एक भी क़द आज आदमक़द नहीं है
राम जाने किस जगह होंगे क़बूतर
इस इमारत में कोई गुम्बद नहीं है
आपसे मिल कर हमें अक्सर लगा है
हुस्न में अब जज़्बा—ए—अमज़द नहीं है
पेड़—पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे
रास्तों में एक भी बरगद नहीं है
मैकदे का रास्ता अब भी खुला है
सिर्फ़ आमद—रफ़्त ही ज़ायद नहीं
इस चमन को देख कर किसने कहा था
एक पंछी भी यहाँ शायद नहीं है.