Kyu
Change Bhasha
क्यूँ
चिंताओं से ग्रसित है जीवन,
आशाओं से भ्रमित है जीवन,
लोभ मोह के भव्य जाल में,
कुंठाओं से नमित है जीवन।।
क्यूँ
झूठों से संसार भरा है,
लालच का दरबार सजा है,
क्रोध काम की वासना से,
जाने क्यूँ ये विचार भरा है।।
चुप होकर सब देख रहें हैं
जीवन के संग खेल रहे हैं,
लालच की इस चक्की को,
कोल्हू क जैसे पेल रहें हैं।।
अक्ल बंद और आंख खुलें है
पाप से इनके पुण्य धुले है,
भूल चुके हैं कर्म की शिक्षा,
विष-अमृत अब साथ घुले हैं ।।