Ye sach hai ki paaon ne bahut kasht uthaye
Change Bhasha
ये सच है कि पाँवों ने बहुत कष्ट उठाए
पर पाँवों किसी तरह से राहों पे तो आए
हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था
कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए
जैसे किसी बच्चे को खिलोने न मिले हों
फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए
चट्टानों से पाँवों को बचा कर नहीं चलते
सहमे हुए पाँवों से लिपट जाते हैं साए
यों पहले भी अपना—सा यहाँ कुछ तो नहीं था
अब और नज़ारे हमें लगते हैं पराए.