हमारी प्रकृति व पर्यावरण में भी ये पाँच तत्त्व मुख्य रूप से घुले हुए हैं । यदि इन तत्वों में प्रदूषण होता है तो इससे न केवल हमारा पर्यावरण दूषित होता है, बल्कि हमारे शरीर व मन भी अस्वस्थ व रोगी बनते हैं ।
प्रकृति में घुले हुए ये पंचतत्व आपस में घुले-मिले हैं, एकदूसरे से जुड़े हुए हैं । इनमें से किसी भी तत्त्व में आया हुआ संतुलन अथवा असंतुलन दूसरे तत्त्व को प्रभावित करता है । किसी भी तत्त्व में कमी या वृद्धि दूसरे तत्त्व क्रो प्रभावित करती है । इसी तरह किसी भी तत्व में प्रदूषण व्याप्त होने पर वह अन्य दूसरे तत्त्व को प्रभावित करता है ।
ठीक इसी प्रकार यदि हमारे शरीर में पंचतत्वों में से किसी भी तत्त्व में वृद्धि या कमी होती है तो उससे संबंधित रोग शरीर में पनप जाते हैं, जैसे-शरीर में वायु तत्त्व की अधिकता से वातरोग पनपते हैं व वायु तत्त्व के असंतुलन से शरीर की क्रियाविधि में गडबड़ी पैदा होती है ।
अग्नि की अधिकता से अम्लता या एसिडिटी होती है व अग्नि की कमी से मंदाग्नि होने से ग्रहण किया गया भोजन ठीक से नहीं पचता । पृथ्वी तत्त्व की अधिकता से मोटापा हो जाता है और पृथ्वी तत्त्व की कमी से शरीर दुर्बल हो जाता है । जल तत्व की अधिकता से शरीर के किन्हीं अंगों में पानी भर जाता है व जल तत्त्व की कमी से शरीर में सूखापन प्रतीत होता है ।
आकाश तत्त्व की अधिकता से अंगों में दर्द होता है व आकाश तत्त्व की कमी से बहरापन, हड्डियों के जोड़ के लचीलेपन में कमी आदि होती है ।
इस तरह पंचतत्वों में संतुलन बहुत जरूरी है, चाहे वह शरीर की बात हो या हमारे पर्यावरण की । वर्तमान समय की यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हमारा शरीर व हमारा पर्यावरण-दोनों ही इस समय प्रदूषण की मार को बुरी तरह से झेल रहे हैं, जिसके कारण हमारी प्रकृति व पर्यावरण में नित नए एवं भांति-भांति के उपद्रव घटित हो रहे हैं ।
इस समय धरती पर सबसे बड़ा संकट जलसंकट है, जलसंकट के कारण भूगर्भ का जलस्तर बहुत कम हो गया है, इसके साथ ही वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में नदी-तालाबों व झरनों में भी जल का स्तर वहुत कम हो जाता है । वर्तमान में अधिकांश नदियों का जल भी प्रदूषित हो गया है । कई तालाब, कुएँ आदि भी सूख गए हैं ।
जलसंकट के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का जो तापमान बढ़ रहा है, उससे ध्रुवों में जमी हुईं बर्फ धीर-धीरे पिघल रही है, इससे समुद्र का जलस्तर अगर एक निश्चित मानदंड से आगे बढेगा, तो उससे समुद्रतट पर बसे हुए शहर जलमग्न हो जाएँगे, डूब जाएँगे । वातावरण में ऊष्मा बढ़ने से ग्रीष्म ऋतु में प्राय: जंगलों में आग लग जाती है, जो अत्यंत भयंकर होती है तथा उसके कारण हमारी बहुत सारी वनस्पतियाँ, जीव-जंतु जलकर नष्ट हो जाते हैं ।
पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा ऋतु में मिट्टी का कटाव होने से भूमि बंजर हो रही है, वह वर्षा ऋतु के जल को अवशोषित नहीं कर पा रही है । पेड़-पौधों की कमी होने से समय पर बारिश भी नहीं हो रही है, क्योंकि पेड़-पौधे ही बादलों को बारिश करने के लिए आकर्षित करते हैं । इसके साथ ही हरियाली में कमी होने से वातावरण में प्रदूषक तत्वों की वृद्धि हो रही है; क्योंकि पेड़-पोधों की हरियाली वातावरण के प्रदूषक तत्वों को सोख लेती है और उसे स्वच्छ बनाती है ।
इस तरह यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, तो इसकी शुरुआत जल तत्त्व से करनी होगी; क्योंकि यदि हमारे पर्यावरण में जल नहीं होगा तो जीवन भी नहीं बचेगा । किसी भी ग्रह में जीवन की खोज करने के लिए वहाँ सबसे पहले जल तत्व को खोजा जाता है । यदि वहाँ जल तत्त्व की मौजूदगी है, तो वहाँ भी जीवन संभव होने के आसार होते हैं ।
जल तत्व के कारण ही हमारी विभिन्न संस्कृतियाँ व सभ्यताएँ प्राय: नदियों के किनारे ही पुष्पित-पल्लवित हुईं और इसीलिए यदि हमें अपने पर्यावरण को बचाना है, उसे सुरक्षित करने में योगदान देना है, तो सबसे पहले हमें अपनी प्रकृति व पर्यावरण में मौजूद जल तत्व को सँभालना होगा, उसे सुरक्षित करना होगा, स्वच्छ करना होगा और उसका संग्रह करना होगा ।
जल तत्त्व से ही भूमि में नमी आएगी, इससे भूमि में वृक्ष-वनस्यतियाँ पनपेंगी, हरियाली बढ़ेगी । हरियाली बढ़ने से वातावरण में निरंतर बढ़ती हुई ऊष्मा व अन्य प्रदूषक तत्त्व पेड़-पौधों में अवशोषित होंगे, पेड़-पौधों की पत्तियों के भूमि पर गिरने से व खाद-पानी से उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ेगी, वातावरण में हरियाली बढने व जल तत्त्व के संतुलन से अग्नि व आकाश तत्त्व भी संतुलित हो जाएँगे ।
इस तरह पर्यावरण को बचाने के लिए हमें प्रकृति के जले तत्त्व को बचाने की और अपना ध्यान देना होगा, इसके साथ ही धरती में हरियाली बढने से अन्य तत्त्व अपने आप ही संतुलित हो जाएँगे, बस, हमें इसमें अपना सहयोग देना होगा । पेड़-पोधों की यदि सुरक्षा की जाये तो वो भी हमारे जीवन को सुरक्षित करेंगे व हमें स्वस्थ रखने में अपना सहयोग देंगे । इस तरह पंचत्तत्वों का संतुलन ही पर्यावरण को संतुलित बनाने का कार्य संपन्न कर सकता है ।