brah.ma
/shlok/adhascordhvan-prasrtaastasya-saakhaa/अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः । अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ৷৷15.2৷৷
Change Bhasha
adhaścōrdhvaṅ prasṛtāstasya śākhā guṇapravṛddhā viṣayapravālāḥ. adhaśca mūlānyanusantatāni karmānubandhīni manuṣyalōkē৷৷15.2৷৷
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इस संसार रूपी वृक्ष की समस्त योनियाँ रूपी शाखाएँ नीचे और ऊपर सभी ओर फ़ैली हुई हैं, इस वृक्ष की शाखाएँ प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा विकसित होती है, इस वृक्ष की इन्द्रिय-विषय रूपी कोंपलें है, इस वृक्ष की जड़ों का विस्तार नीचे की ओर भी होता है जो कि सकाम-कर्म रूप से मनुष्यों के लिये फल रूपी बन्धन उत्पन्न करती हैं৷৷15.2৷৷
Hindi Translation
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