अन्नहीनो दहेद्राष्ट्रं मन्त्रहीनश्च ऋत्विजः । यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः ॥
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annahīno dahedrāṣṭraṃ mantrahīnaśca ṛtvijaḥ | yajamānaṃ dānahīno nāsti yajñasamo ripuḥ ||
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उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.
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There is no enemy like a yajna (sacrifice) which consumes the kingdom when not attended by feeding on a large scale; consumes the priest when the chanting is not done properly; and consumes the yajaman (the responsible person) when the gifts are not made.
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