एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुं नाभिवन्दते । श्वानयोनिशतं गत्वा चाण्डालेष्वभिजायते ॥
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ekākṣarapradātāraṃ yo guruṃ nābhivandate | śvānayoniśataṃ gatvā cāṇḍāleṣvabhijāyate ||
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जब युग का अंत हो जायेगा तो मेरु पर्वत डिग जाएगा. जब कल्प का अंत होगा तो सातों समुद्र का पानी विचलित हो जायगा. लेकिन साधू कभी भी अपने अध्यात्मिक मार्ग से नहीं डिगेगा.
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At the end of the yuga, Mount Meru may be shaken; at the end of the Kalpa, the waters of the seven oceans may be disturbed; but a sadhu will never swerve from the spiritual path.
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