एकाहारेण सन्तुष्टः षट्कर्मनिरतः सदा । ऋतुकालाभिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते ॥
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ekāhāreṇa santuṣṭaḥ ṣaṭkarmanirataḥ sadā | ṛtukālābhigāmī ca sa vipro dvija ucyate ||
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वही सही में ब्राह्मण है जो केवल एक बार के भोजन से संतुष्ट रहे, जिस पर १६ संस्कार किये गए हो, जो अपनी पत्नी के साथ महीने में केवल एक दिन समागम करे. माहवारी समाप्त होने के दुसरे दिन.
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He alone is a true brahmana (dvija or “twice-born”) who is satisfied with one meal a day, who has the six samskaras (or acts of purification such as garbhadhana, etc.) performed for him, and who cohabits with his wife only once in a month on an auspicious day after her menses.
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