श्रीभगवानुवाच | काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदु: | सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: || 2||
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śhrī-bhagavān uvācha kāmyānāṁ karmaṇāṁ nyāsaṁ sannyāsaṁ kavayo viduḥ sarva-karma-phala-tyāgaṁ prāhus tyāgaṁ vichakṣhaṇāḥ
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श्रीभगवान् बोले -- कई विद्वान् काम्यकर्मोंके त्यागको संन्यास कहते हैं और कई विद्वान् सम्पूर्ण कर्मोंके फलके त्यागको त्याग कहते हैं। कई विद्वान् कहते हैं कि कर्मोंको दोषकी तरह छोड़ देना चाहिये और कई विद्वान् कहते हैं कि यज्ञ? दान और तपरूप कर्मोंका त्याग नहीं करना चाहिये।
Hindi Translation
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The Supreme Divine Personality said: Giving up of actions motivated by desire is what the wise understand as sanyās. Relinquishing the fruits of all actions is what the learned declare to be tyāg.
English Translation
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