न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् | स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: || 20||
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na prahṛiṣhyet priyaṁ prāpya nodvijet prāpya chāpriyam sthira-buddhir asammūḍho brahma-vid brahmaṇi sthitaḥ
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जो प्रियको प्राप्त होकर हर्षित न हो और अप्रियको प्राप्त होकर उद्विग्न न हो वह स्थिर बुद्धिवाला मूढ़तारहित तथा ब्रह्मको जाननेवाला मनुष्य ब्रह्ममें स्थित है।
Hindi Translation
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Established in God, having a firm understanding of divine knowledge and not hampered by delusion, they neither rejoice in getting something pleasant nor grieve on experiencing the unpleasant.
English Translation
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