नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।
niyataṃ kuru karma tvaṃ karma jyāyo hyakarmaṇaḥ।śarīrayātrāpi ca te na prasiddhyedakarmaṇaḥ॥
तू शास्त्रविधिसे नियत किये हुए कर्तव्य-कर्म कर; क्योंकि कर्म न करनेकी अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करनेसे तेरा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा।
Swami Ramsukhdasतू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर; क्योंकि अकर्म की अपेक्षा कर्म श्रेष्ठ है तथा अकर्म से तो तेरा शरीर-निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा ।
आपके लिए जो निर्धारित कार्य है, उसे मन-बुद्धि लगाकर मनोयोगपूर्वक करो। क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही सबसे बढ़िया मार्ग है। और अगर कर्म नहीं करोगे तो जीवनयात्रा-शरीर का निर्वाह करना भी असंभव हो जाएगा।
ନିୟତ କର୍ମ ବା ଶାସ୍ତ୍ର ସମ୍ମତ କର୍ତବ୍ୟ କର୍ମ କରିବା ଉଚିତ କାରଣ କର୍ମ ହୀନ ହେବା ଅପେକ୍ଷା କର୍ମ କରିବା ଶ୍ରେଷ୍ଟତର ତେଣୁ କର୍ମ ନ କଲେ ଶରୀର ରକ୍ଷା ଅସମ୍ଭବ
Do thou perform thy bounden duty for action is superior to inaction and even the maintenance of the body would not be possible for thee by inaction
ऐसा होनेके कारण हे अर्जुन जो कर्म श्रुतिमें किसी फलके लिये नहीं बताया गया है ऐसे जिस कर्मका जो अधिकारी है उसके लिये वह नियत कर्म है उस नियत अर्थात् नित्य कर्मका तू आचरण कर क्योंकि कर्मोंके न करनेकी अपेक्षा कर्म करना परिणाममें बहुत श्रेष्ठ है। क्योंकि कुछ भी न करनेसे तो तेरी शरीरयात्रा भी नहीं चलेगी अर्थात् तेरे शरीरका निर्वाह भी नहीं होगा। इसलिये कर्म करने और न करनेमें जो अन्तर है वह संसारमें प्रत्यक्ष है।
श्री हरिकृष्णा दास