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brah.ma
/shlok/sarva-dvare-hu-dehe-smin-prakasha/

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते | ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत || 11|| लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा | रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ || 12|| अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च | तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन || 13||

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sarva-dvāreṣhu dehe ’smin prakāśha upajāyate jñānaṁ yadā tadā vidyād vivṛiddhaṁ sattvam ity uta lobhaḥ pravṛittir ārambhaḥ karmaṇām aśhamaḥ spṛihā rajasy etāni jāyante vivṛiddhe bharatarṣhabha aprakāśho ’pravṛittiśh cha pramādo moha eva cha tamasy etāni jāyante vivṛiddhe kuru-nandana

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जब इस मनुष्यशरीरमें सब द्वारों(इन्द्रियों और अन्तःकरण) में प्रकाश (स्वच्छता) और ज्ञान (विवेक) प्रकट हो जाता है? तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है। हे भरतवंशमें श्रेष्ठ अर्जुन रजोगुणके बढ़नेपर लोभ? प्रवृत्ति? कर्मोंका आरम्भ? अशान्ति और स्पृहा - ये वृत्तियाँ पैदा होती हैं। हे कुरुनन्दन तमोगुणके बढ़नेपर अप्रकाश? अप्रवृत्ति? प्रमाद और मोह -- ये वृत्तियाँ भी पैदा होती हैं।

Hindi Translation

When all the gates of the body are illumined by knowledge, know it to be a manifestation of the mode of goodness. When the mode of passion predominates, O Arjun, the symptoms of greed, exertion for worldly gain, restlessness, and craving develop. O Arjun, nescience, inertia, negligence, and delusion—these are the dominant signs of the mode of ignorance.

English Translation

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः