विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभ्य सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वाऽमृतमश्नुते ॥
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vidyāṃ cāvidyāṃ ca yastadvedobhya saha | avidyayā mṛtyuṃ tīrtvā’mṛtamaśnute ||
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जो विद्या और अविद्या-इन दोनों को ही एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व (देवतात्मभाव = देवत्व) प्राप्त कर लेता है।
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जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है।
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