अहो जनसमूहेऽपि न द्वैतं पश्यतो मम। अरण्यमिव संवृत्तं क्व रतिं करवाण्यहम्॥२-२१॥
Change Bhasha
aho janasamūheʼpi na dvaitaṃ paśyato mama, araṇyamiva saṃvṛttaṃ kva ratiṃ karavāṇyaham
0
आश्चर्य कि मैं लोगों के समूह में भी दूसरे को नहीं देखता हूँ, वह भी निर्जन ही प्रतीत होता है । अब मैं किससे मोह करूँ ॥
Hindi Translation
…
Amazingly, I do not see duality in a crowd, it also appear desolate. Now who is there to have an attachment with.
English Translation
…