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अक्षयं गतसन्ताप- मात्मानं पश्यतो मुनेः। क्व विद्या च क्व वा विश्वं क्व देहोऽहं ममेति वा॥१८- ७४॥

Change Bhasha

akṣayaṃ gatasantāpa- mātmānaṃ paśyato muneḥ, kva vidyā ca kva vā viśvaṃ kva dehoʼhaṃ mameti vā

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जो मुनि संताप से रहित अपने अविनाशी स्वरुप को जानता है, उसके लिए विद्या कहाँ और विश्व कहाँ अथवा देह कहाँ और मैं-मेरा कहाँ ॥

Hindi Translation

For the seer who knows himself as imperishable and beyond pain there is neither knowledge, a world nor the sense that I am the body or the body mine . 

English Translation

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः