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/shlok/akasavadananto-ha-gha-avat-prak-ta-jagat/अष्टावक्र उवाच - आकाशवदनन्तोऽहं घटवत् प्राकृतं जगत्। इति ज्ञानं तथैतस्य न त्यागो न ग्रहो लयः॥६- १॥
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aṣṭāvakra uvāca - ākāśavadanantoʼhaṃ ghaṭavat prākṛtaṃ jagat, iti jñānaṃ tathaitasya na tyāgo na graho layaḥ
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अष्टावक्र कहते हैं - आकाश के समान मैं अनंत हूँ और यह जगत घड़े के समान महत्त्वहीन है, यह ज्ञान है । इसका न त्याग करना है और न ग्रहण, बस इसके साथ एकरूप होना है ॥
Hindi Translation
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Ashtavakra says - I am infinite like space, and this world is unimportant like a jar. This is Knowledge. This is neither to be renounced nor to be accepted but to be one with it.
English Translation
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