आत्मविश्रान्तितृप्तेन निराशेन गतार्तिना। अन्तर्यदनुभूयेत तत् कथं कस्य कथ्यते॥१८- ९३॥
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ātmaviśrāntitṛptena nirāśena gatārtinā, antaryadanubhūyeta tat kathaṃ kasya kathyate
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जो अपने स्वरुप में विश्राम करके तृप्त है, आशा रहित है, दुःख रहित है, वह अपने अन्तः करण में जिस आनंद का अनुभव करता है वह कैसे किसी को बताया जा सकता है ॥
Hindi Translation
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How can one describe what is experienced within by one desireless and free from pain, and content to rest in himself - and of whom ?
English Translation
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