भृत्यैः पुत्रैः कलत्रैश्च दौहित्रैश्चापि गोत्रजैः। विहस्य धिक्कृतो योगी न याति विकृतिं मनाक्॥१८- ५५॥
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bhṛtyaiḥ putraiḥ kalatraiśca dauhitraiścāpi gotrajaiḥ, vihasya dhikkṛto yogī na yāti vikṛtiṃ manāk
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सेवक, पुत्र, स्त्री, नाती और सगोत्र द्वारा हंसी उदय जाने पर, धिक्कारने पर भी योगी के चित्त में थोड़ा सा विकार भी उत्पन्न नहीं होता ॥
Hindi Translation
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A yogi is not in the least put out even when humiliated by the ridicule of servants, sons, wives, grandchildren or other relatives .
English Translation
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