कृतं किमपि नैव स्याद् इति संचिन्त्य तत्त्वतः। यदा यत्कर्तुमायाति तत् कृत्वासे यथासुखम्॥१३- ३॥
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kṛtaṃ kimapi naiva syād iti saṃcintya tattvataḥ, yadā yatkartumāyāti tat kṛtvāse yathāsukham
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किये हुए किसी भी कार्य का वस्तुतः कोई अस्तित्व नहीं है, ऐसा तत्त्वपूर्वक विचार करके जब जो भी कर्त्तव्य है उसको करते हुए सभी स्थितियों में, मैं सुखपूर्वक विद्यमान हूँ ॥
Hindi Translation
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No action is ever committed, in reality. Understanding thus I exist pleasantly in all situations by just doing what is to be done.
English Translation
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