कर्मनैष्कर्म्यनिर्बन्ध- भावा देहस्थयोगिनः। संयोगायोगविरहादह- मासे यथासुखम्॥१३- ४॥
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karmanaiṣkarmyanirbandha- bhāvā dehasthayoginaḥ, saṃyogāyogavirahādaha- māse yathāsukham
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शरीर भाव में स्थित योगियों के लिए कर्म और अकर्म रूपी बंधनकारी भाव होते हैं, पर संयोग और वियोग की प्रवृत्ति यों को छोड़कर सभी स्थितियों में, मैं सुखपूर्वक विद्यमान हूँ ॥
Hindi Translation
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Yogis, attached with their bodies think in terms of doing or avoiding certain actions. This causes bondage. But I exist pleasantly in all situations abandoning the feelings of attachment and detachment.
English Translation
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