जनक उवाच - कायकृत्यासहः पूर्वं ततो वाग्विस्तरासहः। अथ चिन्तासहस्तस्माद् एवमेवाहमास्थितः॥१२- १॥
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janaka uvāca - kāyakṛtyāsahaḥ pūrvaṃ tato vāgvistarāsahaḥ, atha cintāsahastasmād evamevāhamāsthitaḥ
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श्री जनक कहते हैं - पहले मैं शारीरिक कर्मों से निरपेक्ष (उदासीन) हुआ, फिर वाणी से निरपेक्ष (उदासीन) हुआ । अब चिंता से निरपेक्ष (उदासीन) होकर अपने स्वरुप में स्थित हूँ ॥
Hindi Translation
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Sri Janak says - First I developed indifference towards actions performed by body then I became indifferent to actions performed by speech. Now, I have become indifferent to all sorts of anxieties and stay as I am.
English Translation
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