क्व प्रवृत्तिर्निर्वृत्तिर्वा क्व मुक्तिः क्व च बन्धनं। कूटस्थनिर्विभागस्य स्वस्थस्य मम सर्वदा॥२०- १२॥
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kva pravṛttirnirvṛttirvā kva muktiḥ kva ca bandhanaṃ| kūṭasthanirvibhāgasya svasthasya mama sarvadā||20- 12||
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अचल, विभागरहित और सदा स्वयं में स्थित मेरे लिए क्या प्रवृत्ति है और क्या निवृत्ति, क्या मुक्ति है और क्या बंधन ॥
Hindi Translation
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For me who is forever unmovable and indivisible, established in Self, there is no tendency or renunciation, no liberation or bondage.
English Translation
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