क्वात्मनो दर्शनं तस्य यद् दृष्टमवलंबते। धीरास्तं तं न पश्यन्ति पश्यन्त्यात्मानमव्ययम्॥१८- ४०॥
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kvātmano darśanaṃ tasya yad dṛṣṭamavalaṃbate, dhīrāstaṃ taṃ na paśyanti paśyantyātmānamavyayam
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अज्ञानी को आत्म-साक्षात्कार कैसे हो सकता है जब वह दृश्य पदार्थों के आश्रय को स्वीकार करता है । ज्ञानी पुरुष तो वे हैं जो दृश्य पदार्थों को न देखते हुए अपने अविनाशी स्वरूप को ही देखते हैं ॥
Hindi Translation
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How can there be self knowledge for him whose knowledge depends on what he sees. The wise do not see this and that, but see themselves as unending .
English Translation
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