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महदादि जगद्द्वैतं नाममात्रविजृंभितं। विहाय शुद्धबोधस्य किं कृत्यमवशिष्यते॥१८- ६९॥

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mahadādi jagaddvaitaṃ nāmamātravijṛṃbhitaṃ, vihāya śuddhabodhasya kiṃ kṛtyamavaśiṣyate

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महतत्त्व से लेकर सम्पूर्ण द्वैतरूप दृश्य जगत नाम मात्र का ही विस्तार है । शुद्ध बोध स्वरुप धीर ने जब उसका भी परित्याग कर दिया फिर भला उसका क्या कर्तव्य शेष है ॥

Hindi Translation

What remains to be done by the man who is pure awareness and has abandoned everything that can be expressed in words from the highest heaven to the earth itself ?

English Translation

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः