जनक उवाच - मय्यनंतमहांभोधौ विश्वपोत इतस्ततः। भ्रमति स्वांतवातेन न ममास्त्यसहिष्णुता॥७- १॥
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janaka uvāca - mayyanaṃtamahāṃbhodhau viśvapota itastataḥ, bhramati svāṃtavātena na mamāstyasahiṣṇutā
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राजा जनक कहते हैं - मुझ अनंत महासागर में विश्व रूपी जहाज अपनी अन्तः वायु से इधर - उधर घूमता है पर इससे मुझमें विक्षोभ नहीं होता है ॥
Hindi Translation
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King Janaka says: In infinite ocean of myself, world wanders here and there like a ship driven by its own wind. But it does not create turbulence in me.
English Translation
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