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न जातु विषयाः केऽपि स्वारामं हर्षयन्त्यमी। सल्लकीपल्लवप्रीत- मिवेभं निंबपल्लवाः॥१७- ३॥

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na jātu viṣayāḥ keʼpi svārāmaṃ harṣayantyamī, sallakīpallavaprīta- mivebhaṃ niṃbapallavāḥ

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अपनी आत्मा में रमण करने वाला किसी विषय को प्राप्त करके हर्षित नहीं होता जैसे कि सलाई के पत्तों से प्रेम करने वाला हाथी नीम के पत्तों को पाकर हर्ष नहीं करता है॥

None of the senses can please a man, who is established in Self, just as Neem leaves do not please the elephant that likes Sallaki leaves. 

English Translation

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः