नैव प्रार्थयते लाभं नालाभेनानुशोचति। धीरस्य शीतलं चित्तम- मृतेनैव पूरितम्॥१८- ८१॥
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naiva prārthayate lābhaṃ nālābhenānuśocati, dhīrasya śītalaṃ cittama- mṛtenaiva pūritam
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धीर का चित्त ऐसे शीतल रहता है जैसे वह अमृत से परिपूर्ण हो । वह न लाभ की आशा करता है और न हानि का शोक ॥
Hindi Translation
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He neither longs for possessions nor grieves at their absence. The calm mind of the sage is full of the nectar of immortality .
English Translation
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