नोद्विग्नं न च सन्तुष्ट- मकर्तृ स्पन्दवर्जितं। निराशं गतसन्देहं चित्तं मुक्तस्य राजते॥१८- ३०॥
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nodvignaṃ na ca santuṣṭa- makartṛ spandavarjitaṃ, nirāśaṃ gatasandehaṃ cittaṃ muktasya rājate
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मुक्त पुरुष के चित्त में न उद्वेग है, न संतोष और न कर्तृत्व का अभिमान ही है उसके चित्त में न आशा है, न संदेह ऐसा चित्त ही सुशोभित होता है ॥
Hindi Translation
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The mind of the liberated man is not upset or pleased. It shines unmoving, desireless, and free from doubt.
English Translation
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